Saturday 26 October 2013

क्या 30 अक्तूबर का दिल्ली सम्मेलन लखनऊ की 30 सितंबर रैली की सफलता पर पानी फेर देगा ?---विजय राजबली माथुर

रैली मार्च 30 सितंबर,लखनऊ

30 सितंबर ,ज्योतिबा फुले पार्क,लखनऊ
"जहां तक रैली की भौतिक सफलता का प्रश्न है रैली पूर्ण रूप से सफल रही है और कार्यकर्ताओं में जोश का नव संचार करते हुये जनता के मध्य आशा की किरण बिखेर सकी है। लेकिन क्या वास्तव में इस सफलता का कोई लाभ प्रदेश पार्टी को या राष्ट्रीय स्तर पर मिल सकेगा?यह संदेहास्पद है क्योंकि प्रदेश में एक जाति विशेष के लोग आपस में ही 'टांग-खिचाई' के खेल में व्यस्त रहते हैं। यही वजह है कि प्रदेश में पार्टी का जो रुतबा हुआ करता था वह अब नहीं बन पा रहा है। ईमानदार और कर्मठ कार्यकर्ताओं का उत्पीड़न एक पदाधिकारी विशेष द्वारा निर्लज्ज तौर पर किया जाता है और उसको सार्वजनिक रूप से वाह-वाही प्रदान की जाती है। एक तरफ ईमानदार IAS अधिकारी 'दुर्गा शक्ती नागपाल'के अवैध निलंबन के विरुद्ध पार्टी सार्वजनिक प्रदर्शन करती है और दूसरी तरफ उत्पीड़क पदाधिकारी का महिमामंडन भी। यह द्वंदात्मक स्थिति पार्टी को अनुकूल परिस्थितियों का भी लाभ मिलने से वंचित ही रखेगी। तब इस प्रदर्शन और इसकी कामयाबी का मतलब ही क्या होगा?"  --- http://vidrohiswar.blogspot.in/2013/09/3-30.html

लखनऊ में सम्पन्न 30 सितंबर 2013 की सफल रैली के संबंध में मैंने यह विवरण लिखा था। इस रैली में हमारे प्रदेश व केंद्रीय पदाधिकारियों ने एक स्वर से 'केंद्र सरकार'के साथ-साथ 'उ प्र की सपा सरकार 'की कटु आलोचना की थी। उसी 'सपा' के मुखिया को 30 अक्तूबर 2013 के दिल्ली सम्मेलन में  ससम्मान बुलाया गया है। प्रदेश के सुदूर कोने-कोने से आए प्रदेश की सपा सरकार के सताये हजारों कार्यकर्ताओं को लखनऊ में यह आशा बंधी थी कि अब हमारा पार्टी नेतृत्व सही दिशा में कदम बढ़ाएगा। किन्तु पार्टी के वरिष्ठ नेता द्वारा जब दिल्ली सम्मेलन में सपाध्यक्ष मुलायम सिंह को ससम्मान बुलाये जाने की घोषणा की गई तो प्रदेश पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने उस पर तीखी प्रतिक्रिया  (पिछली पोस्ट)दी जो साधारण कार्यकर्ताओं की ही आवाज़ है । लोकसभा चुनावों में भाकपा द्वारा सपा का समर्थन करने से पार्टी कार्यकर्ताओं में निराशा व हताशा का घनघोर संचार होगा जो उनको उदासीन ही बनाएगा। तब मेरे द्वारा व्यक्त उपरोक्त आशंका ही सच होगी। 

सी पी आई की स्थापना 1925 में हुई थी जो आज सबसे पुरानी पार्टी है क्योंकि 1885 में स्थापित कांग्रेस तो 1977 में'जनता पार्टी' में विलय कर चुकी है,सोनिया जी की अध्यक्षता वाली कांग्रेस की स्थापना 1969 में इन्दिरा गांधी ने की थी जो कि 'कांग्रेस (आई)'है । लेकिन दुर्भाग्य है कि जिस पार्टी को आज जन-समर्थन से सत्ता में होना चाहिए था उसके शीर्ष नेता गण शोषकों-उतपीडकों की पार्टी और उसके नेताओं की परिक्रमा कर रहे हैं। 

जिस सपा को समर्थन की बात की जाती है और जो खुद को डॉ लोहिया का वारिस बताती है उसके इतिहास से बड़े नेता गण नावाकिफ कैसे हैं?डॉ राम मनोहर लोहिया की पहल पर कांग्रेस के भीतर ही 'कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी' की स्थापना 1930 में सिर्फ सी पी आई की बढ़त को रोकने हेतु ही की गई थी जो आज़ादी के बाद कांग्रेस से स्वतंत्र हो गई। डॉ लोहिया का साहित्य इन घोषणाओं से भरा हुआ है कि भारत के लिए 'पूंजीवाद' और 'साम्यवाद' दोनों ही अनुपयुक्त हैं। डॉ लोहिया की पहल पर 'चित्रकूट' में 'रामायण मेला' की शुरुआत हुई थी जिसके सहारे उ प्र में 'जनसंघ' ने बढ़त हासिल की और 1967 में पहली बार प्रदेश की सत्ता में भागीदारी भी हासिल की। डॉ लोहिया की इच्छा के मुताबिक ही 'जे पी' सर्वोदय को त्याग कर 'सम्पूर्ण क्रांति' का विचार लेकर आगे आए और उनके आंदोलन के बल पर 'जनसंघ' 1977 में 'जनता पार्टी 'में विलीन होकर केंद्र की सत्ता में पहली बार भागीदारी कर सका । जनता पार्टी के सत्ताच्युत होने के बाद जनसंघ 'भाजपा' के रूप में अवतरित हो गया। 1989 की वी पी सरकार भाजपा की बैसाखी के हटने से ही गिर गई और चंद्रशेखर ने आडवाणी से गले मिल कर इसके लिए धन्यवाद अदा किया था। 

1991 में राजीव गांधी की हत्या से उत्पन्न परिस्थियों ने पुनः इन्दिरा कांग्रेस को सत्तारूढ़ कर दिया। सत्ता वापिसी के बाद जिस प्रकार इन्दिरा जी ने 1980 में जन-विरोधी नीतियों का वरण किया था  उसी प्रकार नरसिंघा राव जी ने मनमोहन जी के परामर्श से 'उदारीकरण' के नाम से पूंजीवाद की शरण ली जिस पर छह वर्षों तक भाजपा सरकार भी चली मनमोहन सरकार के तो कहने ही क्या?मनमोहन सरकार को जब परमाणु समझौते के विरोध में सी पी आई ने भी हटाना चाहा था तो 'सपा' और 'मुलायम सिंह'ने ही उसे बैसाखी सा सहारा दिया था और आज भी 'सपा' की बैसाखी पर ही मनमोहन सरकार टिकी हुई है। 

इन परिस्थितियों में मनमोहन सरकार के विकल्प हेतु 'सपा' के सहयोग व समर्थन का मतलब क्या है?क्या 30 सितंबर की लखनऊ रैली और कल  25 अक्तूबर की पटना रैली 



तीनों चित्र :25 अक्तूबर,गांधी मैदान,पटना


से उ प्र व बिहार में पार्टी कार्यकर्ताओं में उत्पन्न जोशो-खरोश को  सपा -मुलायम सहयोग से समाप्त करने का ही कोई हेतु तो 30 अक्टोबर का दिल्ली सम्मेलन नहीं बनने जा रहा है?

1 comment:

  1. आलेख और चित्र को सांझा करने लिए शुक्रिया
    सादर

    ReplyDelete