Monday 16 December 2013

कमजोर तबके को पूर्ण रूप से जागरूक करना होगा, तभी हम समाजवाद या वैदिक काल के साम्यवाद की कल्पना कर सकते हैं ??---Jagdish Chander

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 http://communistvijai.blogspot.in/2013/12/blog-post_15.html

दिये लिंक (हमारे पिछले पोस्ट ) पर कामरेड  Jagdish Chanderजी ने 'जनवादी जन मंच'ग्रुप में जो टिप्पणियाँ दी हैं उनको संयुक्त रूप से यहाँ आलेख रूप में दिया जा रहा है :---
Jagdish Chander :
 सुधा सिंह जी का सवाल और धर्मेन्द्र प्रताप सिंह जी का नजरिया पर आनंद प्रकाश तिवारी जी स्पष्ट रूप से आम आदमी पार्टी को भारत का भविष्य मान रहे हैं, दुःख इस बात का है कि यदि कोई वरिष्ट कामरेड अपने को एक वाम विचारधारा का मानते हैं तो क्या वे कम्युनिस्ट के सिद्धांतो से भली भाँती परिचित नहीं हैं हम तो आपको वाम विचारधारा का मार्गदर्शक समझते हैं और हम आपके विचारों को पढ़ कर हताशा के भंवर में फंश जाते हैं, किन्तु हम यह भी समझते हैं कि बहुत से आप जैसे कामरेड हताशा में अपना यह मार्ग छोड़ जाते हैं, हो सकता है वे भी आपके सामान अपने ही जीवन में समाजवाद और साम्यवाद पूरे देश और दुनिया में स्थापित होते देखना चाहता हो , ऐसा होना स्वाभाविक ही है, हम वाम विचारधारा के सामाजिक कार्यकर्ता जब अपने को तथाकथित किसी भी धर्म का अनुयायी मानते हैं तो ऐसा ही होता है ? क्योंकि तथाकथित धार्मिक विचार हमें हताशा की ही और ले जाते है इसी कारण वहुत से वाम विचारधारा के मित्र वाम मार्ग को हताशा में छोड़ कर चले गए , कहाँ गए कुछ पता नहीं चलता ?? वामपंथी विचारधारा में मैंने सबसे पहले जो सिक्षा ली है वह है कि :- " हमारे पास खोने के लिए कुछ नहीं है , किन्तु पाने के लिए सारा संसार पढ़ा है" ? कम्युनिस्म एक विज्ञान है ? इसलिए उसे हमें विज्ञानिक नजरिये से ही देखना , पढ़ना और समझना होगा ? उत्पादन के साधनों का स्वामी समाज होगा ? क्या हमने इसे विज्ञानिक नजरिये से समझा है ? सायद नहीं ? उत्पादन के साधन क्या हैं ? और इन उत्पादन के साधनों का स्वामी वर्त्तमान में कौन है ? और समाज क्या है और कैसे यह समाज उत्पादन के साधनों का स्वामी बनेगा आदि आदि ?
इतिहास के थोड़ा सा गर्भ में जाते हैं, कहा जाता है कि वैदिक काल यानि आदिम मानव जब जंगलों में रहता था, पेट भरने के लिए वह जीवों और जीव न मिलने पर अपने मानव साथियों को भी मार कर खा जाता था, काल परिवर्तन में वह उस जीवन से निकल कर जब मानव सभ्य होने लगा तो वह कबीलों और फिर काल परिवर्तन यानि हर बार कालपरिवर्तन का अर्थ है कि उसकी बुद्धि विकसित होती गयी, और धीरे धीरे उसे विद्द्या ज्ञान यानि वैदिक ज्ञान प्राप्त होने लगा, यानि वह भोजन के लिय़े जंगली जीवों को अपने उपयोग के लिए पालने लगा और उसे मांश के लिए जंगलों में नहीं जाना पढता था, सो उसे भोजन के लिए मानवों का मांश खाने की जरूरत नहीं पढ़ी ?? ??????????


 2 ---- - इस प्रकार उस काल के मानव समाज की बुद्धि का जब विकास होने लगा तो वह अपनी विकसित बुद्धि के जरिये खेती बाड़ी करने लगा, तब तक सायद मानव कबीलों में ही रहता था, जनसंख्या के बढ़ते कबीलों के क्षेत्र निर्धारित होने लगे, फिर भी वही जंगली प्रवृति नहीं छोड़ पा रहे थे, बुद्धि और विकसित हुयी, विज्ञानिक सिद्धांत है कि आवस्यकता अविस्कार की जननी है, तब लेखनी का जन्म हुआ, प्रारम्भिक लेखनी में मानव चित्रों में ही अपने विचार ब्यक्त करता था, और फिर कालपरिवर्तन में विकसित कबीलो की रचना होने लगी, अधिक विकसित बुद्धि के मनुष्यों ने सोचा कि यह कबीलों का आपसी संघर्ष बंद होना चाहिए वे संगठित होने लगे, और उस लेखनी को रेखाओं आदि विकसित तरीके से विचार ब्यक्त करने लगे, उस ज्ञान से विचारों को उस काल के ताल पत्रों यानि ताड़ के बृक्षों के बड़े बड़े पत्तों में , आदि में रचना करने लगे और उसके बाद सायद रेखाओं को जोड़कर अक्षरों का ज्ञान और काल परिवर्तन में धातु का अविस्कार और तब धातुओं के ताम्रपत्रों में विचार संचित होने लगे, यही वह काल था जब मानवों की जनसंख्या बहुत अधिक बढ़ने लगी , और आवस्यकता की वस्तुओं को पाने के लिए दुसरे दुर्बल कबीलों से युद्ध करके उसे छीन लिया जाता था, इस प्रकार युद्धों में बहुत से मानवों की हत्याओं से बाद में वस्तुओं की आपूर्ति तो होनी ही थी क्योंकि जिस वास्तु का वह कबीला उत्पादन करता था जरूरी नहीं कि उसका ज्ञान उस दुसरे कबीले को रहता होगा ? क्रमानुसार विकास के सिद्धांत में मनुष्य ने वर्ण ब्यवस्था को जन्म दिया , मनुष्य के सरीर की रचना के सिद्धांत पर मनुष्य के ब्रह्म यानि सर के भाग को एक हिस्सा, दूसरा मनुष्य के वक्षसतल यांनी मनुष्य की छाती, और तीसरा मनुष्य के पेट यानि रूद्र, और चौथा सरीर का सबसे निचला भाग उसके पैर, इस प्रकार मनुष्य सरीर के हिस्सों के आधार पर चार वर्णो की स्थापना की ??? ????????????????????..........................

 3---- मनुष्य सरीर का सबसे ऊपरी हिस्सा मस्त यानि मनुष्य का सिर यानि मस्तिक में ही बुद्धि यानि ब्रह्म ज्ञान का द्रव्य होता है, इस लिए पहले वर्ण का नाम ब्राह्मण यानि ज्ञान देने वाला उसका कार्य लिखने और ज्ञान देने और विचारों के आदान प्रदान का था, दूसरा क्षत्रिय यानि जंगली जानवरों से रक्षा, चौकीदारी, और सिपाही, का कार्य, तीसरा , जिस प्रकार मनुष्य भोजन करता है और पेट के अंदर सुरक्षित रहकर सरीर के सभी हिस्सों में अनुपात के अनुसार खुराक भेजता है, उसी प्रकार तीसरे वर्ण का नाम वैश्य रखा गया, यानि वह उत्पादित सामान या वास्तु को समाज में अनुपात के अनुसार सामान रूप से वितरित करे,, और चौथा वर्ण बनाया सूद्र, मनुष्य के सरीर का सबसे निचला हिस्सा पैर का है, जो सरीर का सारा भार सम्भालता है, उस वर्ण का नाम सूद्र रखा गया ? वर्ण व्यवस्था वह ब्यवस्था थी जिसमे मनुष्यों के समूहों को उनकी योग्यता के अनुसार कार्य बाँट दिए गए ? सायद इसी काल को हम वैदिक काल कह सकते हैं, सायद वर्ण ब्यवस्था काफी विकसित ब्यवस्था थी ? तब उस काल में निश्चित रूप से किसी भी वर्ण की संतान के जन्म के पश्चात जब उसे ज्ञान प्राप्ति के लिए आश्रम में भेजा जाता तो उसकी बुद्धि और कर्म यानि उसकी शारीरिक बुद्धि या क्षमता या योग्यता के अनुसार उसे सिक्षा दी जाती थी, इस सन्दर्भ में हम यह स्पष्ट कर दें कि कालांतर में भी ऐसा निश्चित नहीं था और वर्त्तमान में भी ऐसा नहीं होता कि डाक्टर का पुत्र डाक्टर ही बनेगा, और शिक्षक का पुत्र शिक्षक ही और सैनिक का पुत्र सैनिक ही बनेगा, वैसे भी तब भी और आज भी योग्यता और सरीर की सक्षमता के अनुसार ही उसे उस का ज्ञान दिया जाता था , इसलिए वर्ण व्यवस्था में ब्राह्मण का पुत्र सूद्र के कार्य के योग्य होता तो उसे सूद्र का ही कार्य करना पढता था, क्षत्रिय का पुत्र भी यदि किसी भी ऊपर की तीनों वर्णों की योग्यता नहीं रखता तो उसे भी सूद्र का ही कार्य करना पड़ता था, इसी प्रकार वैश्य के पुत्र को भी ऊपर के तीनों वर्णों की अयोग्यता होने पर उसे भी सूद्र का ही कार्य करना पढता था, और कोई सूतपुत्र पुत्र यदि बुद्धिमान होता तो उसे उसकी योग्यता के अनुसार ब्राह्मण के वर्ण का कार्य दिया जाता था ?????????????????????????????/-----.........

 -4------ कामरेड्स यदि पढ़ने वाले बुरा न माने तो हम वर्त्तमान में यह कह सकते हैं कि कौन सी जाती का इंसान किस वर्ण की संतान है, कोई दावा नही कर सकता, क्योंकि जैसे ही जाती ब्यवस्था का चालाकी से जन्म होने लगा, सब कुछ मिक्स होने लगा , वर्ण ब्यवस्था के चौथे वर्ण सूद्र के पास उस काल में सबसे अधिक कार्य था, उत्पादन के तमाम साधन उसके ही हाथ में थे वह मालिक नहीं था क्योंकि उत्पादित वस्तुओं का वर्ण ब्यवस्था के काल में समाज के सभी वर्णो में बराबर की हिस्सेदारी होती थी, उस काल में सभी के पास रहने के लिए घर पहनने के लिए वस्त्र, और खाने के लिए अनाज होता था, उत्पादित वस्तुओं का आदान प्रदान वैश्य के सुपुर्द था क्योंकि उसे हिसाब किताब का ज्ञान दिया जाता था यानि वह एक स्थान से उत्पादित वास्तु को दुसरे स्थान पर विनिमय के आधार पर लाने और ले जाने का कार्य करता था, क्योंकि उस काल में सायद आवा गमन के साधन कम ही थे , यानि वह कुली का भी कार्य करता था, और क्षत्रिय का कर्म यानि कार्य तो उसकी सरीर की सक्षमता के अनुसार सिपाही, चौकीदार, और सुरक्षा गार्ड का ही होता था, कबीलों के प्रमुखों में सभी वर्णों की बराबर सामान भागेदारी हुआ करती थी कोई बड़ा और छोटा प्रमुख नहीं होता था, उम्र के हिसाब से सबसे बृद्ध ही प्रमुख होता होगा, वह चाहे सूद्र हो, इस प्रकार वही प्रमुख वर्ण ब्यवस्था को मजबूत बनाये रखते थे ??? इसी विकसित समाज में ब्राह्मणों के कार्य करने वाले विद्वानों ने वेदों की रचना की, यानि ज्ञान को कलम बांध करने लगे, लेकिन काल परिवर्तन में वर्णों में स्वार्थ पनपने लगा विशेषकर ब्राह्मण ने सोचा कि अपनी संतान को ऊपर के तीनों वर्णों की अयोग्यता होते हुए भी उसे ब्राह्मण का ज्ञान जबर्दस्ती देने लगा, क्योंकि तब उसकी समाज की एकता और समानता की सोच के विरुद्ध अपने खून के प्रति स्वार्थ पनपने लगा, और वह अज्ञानी पुत्र को ब्राह्मण का ज्ञान देने लगा, और वह अज्ञानी अधूरा ज्ञान प्राप्त करके , जिन रचित वेदों से वर्ण ब्यवस्था की रचना की गयी थी और उन वेदों के माध्यम से वर्ण व्यवस्था सुचारू रूप से चल रही थी, उन वेदों में वह मन्त्रों के स्थान पर कुमन्त्रों को जोड़ने लगा ???????????????????????????????????????????...

 5------क्योंकि ज्ञान में रूचि न रखने वाला मनुष्य कुपरिवृतियों में निपुण हो जाता है, और तब हुयी पुराणों की रचना, जिसमे मन्त्रों को बदल कर कुमन्त्रों में उलटे सीधे संस्कार और कर्म काण्डों की रचना होने लगी, , यानि वेदों के पश्चात जन्म ,मृत्य, यात्रा ,किसी भी प्रकार का निर्माण, बीमारी, दुर्घटना आदि के कारणों को अज्ञात शक्ति के हाथों में नियंत्रित मानते हुए उनके निवारण के लिए पूजा पाठ,आदि कर्म काण्ड करने का उलटा ज्ञान दिया जाने लगा, क्योंकि बाकी सामान को तो आवस्यकता अनुसार ही ही दिया जाता था, आदि किसी भी प्रकार के कार्यों के आरंभ को कुमन्त्रों से पूजा पाठ आदि की ब्यवस्था की रचना कर दी , और तब जन्म हुआ वर्ण व्यवस्था के कार्यों के हिस्सेदारी पर अधिकार की सुरुआत , क्योंकि सूद्र की संख्या यानि कह सकते हैं आज के दलित , पिछड़े, और ट्राईबल उस काल में यह वर्ण कुल जनसंख्या का सायद, ९०% रहा होगा, क्योंकि यही वर्ण मेहनती था, और उत्पादन के सभी साधन उसी के हाथ में थे, ब्राह्मण ने उसे ज्ञान देना बंद कर दिया और कहा कि तुम मेहनत करते हो तुम्हारे पास समय कम होता है, इसलिए तुम अपने काम में लगे रहो,पढ़ने की कोई आवस्यकता नहीं और वह बेचारा उस चतुर अज्ञानी ब्राह्मण की चतुरता को नहीं समझ पाया, और काल परीवर्तन में वह अज्ञान के अँधेरे में ही सोया और पढ़ा रहा, तब उस चतुर तथाकथित अज्ञानी ब्रहामण ने चातुरता से उत्पादन के साधनों पर लेखनी द्वारा अपना स्वामित्व कायम करना आरम्भ कर दिया, और कालांतर में उस तथाकथित चतुर ब्राह्मण ने राजतंत्र की स्थापना करनी आरम्भ कर दी ?? ????????????????????????????????/-----.....

--6---------- और इस प्रकार us kaal me ताकतवर चौकीदार, सिपाही, और सुरक्षा गार्ड में से एक को राजा बना दिया और वैश्य को उत्पादन रखने के भांडारों का मालिक बना दिया, और चतुर्थ वर्ण को मेहनत के लालच में उलझाये रखा, तब होता है जाती ब्यवस्था का जन्म, और तब ब्राह्मण राजा को नियुक्त करता है, और समाज की आवस्यकता के अनुसार वर्णों को जाती में बदलने के पश्चात उसकी आवस्यकता के अनुसार ज्ञान देने लगा, और तब उसने राजा की परिभाषा देनी आरम्भ कर दी कि राजा भगवान् का भेजा हुआ प्रतिनिधि है, क्योंकि कर्म काण्ड, तो वह कुमन्त्रों की रचना करते हुए ही आरम्भ कर चुका था, सो राजा भगवान् का भेजा हुआ प्रतिनिधि है, यानि राजा का आदेश भगवान् का आदेश माना जाएगा, क्योंकि परिभाषा तो तथाकथित ब्राह्मण ने निश्चित कर दी थी इस लिए वह जब चाहे राजा और प्रजा को को भगवान् के भय से कहीं भी घुमा सकता था, क्योंकि समाज को उसके कार्य की योग्या के अनुसार ही ज्ञान दिया जाता था, यानि उस तथाकथित ब्राह्मण ने सभी वर्णों को परिवर्तित जातियों में रचना करते हुए उसके कार्य पुराणों में निर्धारित कर दिए थे, और वह ताकत के साथ मिलकर बाकी समाज का शोषण और उत्पीड़न करने लगा, काल परिवर्तन में उसके हाथ में हमेशा ही लड्डू रहते हैं ? अब हम उक्त सही विषय में आते हैं, कि जाती ब्यवस्था और फिर बाद में तथाकथित धर्म का जन्म , इस प्रकार हमारे अंदर आदिम काल की कुप्रवृति के बीज तो हैं, इस लिए हम अपनी ऊंची जाती के होने पर अपने को सभी मनुष्यों में सर्वश्रेष्ट मानते हैं, और दूसरों का दमन और शोषण करने से नहीं हिचकिचाते,क्योंकि हमारे अंदर आदिम कुप्रवृति जीवित है,हम प्रतेक वास्तु पर अपना अधिकार या वर्चस्व चाहते हैं, सब कुछ एक साथ पाना चाहते हैं , इस कुप्रवृति को समाज से दूर करने के लिए समाज को पूरे इतिहास का सही ज्ञान यानि जागरूक कर सही दिशा देनी होगी , वर्ण व्यवस्था का पूरा ज्ञान सही तरीके से पढ़ाना होगा, हाँ यह भी सत्य है कि सदियों से दलितों और पिछड़ों को ज्ञान से वंचित रखा गया था और उनसे सभी अधिकार छीन लिए गए थे, इस लिए दलित और पिछड़े समाज को सर्वप्रथम जागरूक करना होगा, कालांतर पूर्व ताकतवर समाज प्रतेक उत्पादन के साधनों पर अपना वर्चस्व कायम कर चुका था, इसी लिए आज भारत के गावो में रहने वाले ८०% लोग निर्धन ही हैं, उसमे भी सबसे अधिक निर्धन दलित और पिछड़े ही हैं क्योंकि वह वर्णव्यवस्था के काल से ही मेहनत करते रहे हैं, और इसी कारण वह अज्ञानता के अन्धकार में ही डूबे रहे क्योंकि उन्हें ज्ञान से वंचित ही रखा गया था यानि उन्हें ज्ञान दिया ही नहीं गया था इसी प्रकार सवर्ण वर्ग के कमजोर तबके को पूर्ण रूप से जागरूक करना होगा, तभी हम समाजवाद या वैदिक काल के साम्यवाद की कल्पना कर सकते हैं ??

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