Thursday 13 February 2014

केजरीवाल के भ्रष्‍टाचार-विरोधी ''मुहिम'' पर गदगद कम्‍युनिस्‍ट मार्क्‍सवादी राजनीतिक अर्थशास्‍त्र का ककहरा भी नहीं जानते----कविता कृष्‍णपल्‍लवी



बुर्ज़ुआ जनवादी गणराज्‍य में भ्रष्‍टाचार का प्रश्‍न: मार्क्‍सवादी दृष्टिकोण

February 13, 2014 at 7:33pm
किसी भी पूँजीवादी जनवादी गणराज्‍य (बुर्ज़ुआ डेमोक्रेटिक रिपब्लिक) में भ्रष्‍टाचार-निर्मूलन का नारा मात्र एक लोकरंजक नारा ही हो सकता है। भ्रष्‍टाचार पूँजीवादी आर्थिक आधार और अधिरचना के बीच के अन्‍तरविरोध को हल करने में एक अहम भूमिका निभाता है। जब यह अपनी सीमा लाँघकर पूँजीवादी जनवाद के लिए संकट पैदा करने लगता है, तो स्‍वयं पूँजीवाद ही इसे नियंत्रित करने की कोशिश करता है। भ्रष्‍टाचार पर नियंत्रण पूँजीवादी अर्थतंत्र और पूँजीवादी जनवादी गणतांत्रिक अधिरचना में एक पैबंदसाजी से अधिक कुछ नहीं है। केजरीवाल के भ्रष्‍टाचार-विरोधी ''मुहिम'' पर गदगद कम्‍युनिस्‍ट मार्क्‍सवादी राजनीतिक अर्थशास्‍त्र का ककहरा भी नहीं जानते। ऐसे सतही सुधारवादी, लोकरंजकतावादी वामपंथियों के विचारार्थ (हालाँकि वे इसपर शायद ही विचार करेंगे या विचार करने की शायद उनकी क्षमता ही नहीं है) एक फ्रेडरिक एंगेल्‍स का और एक लेनिन का उद्धरण हम नीचे प्रस्‍तुत कर रहे हैं:


''जनवादी गणराज्‍य (डेमोक्रेटिक रिपब्लिक) आधिकारिक तौर पर (नागरिकों के बीच) सम्‍पत्ति में अंतर का कोई ख़याल नहीं करता। उसमें धन-दौलत परोक्ष रूप से, पर और भी ज्‍यादा सुनिश्चित ढंग से, अपना असर डालती है। एक तो सीधे-सीधे राज्‍य के अधिकारियों के भ्रष्‍टाचार के रूप में, जिसका क्‍लासिकी उदाहरण अमेरिका है; दूसरे, सरकार तथा स्‍टॉक एक्‍सचेंज के गठबंधन के रूप में।'' -- फ्रेडरिक एंगेल्‍स: 'परिवार, निजी सम्‍पत्ति और राज्‍य की उत्‍पत्ति'



''जनवादी गणराज्‍य  ''तार्किक तौर पर'' पूँजीवाद से विरोध रखता है, क्‍योंकि ''आधिकारिक तौर पर'' यह धनी और गरीब दोनों को बराबरी पर रखता है। यह आर्थिक व्‍यवस्‍था और राजनीतिक अधिरचना के बीच का अन्‍तरविरोध है। साम्राज्‍यवाद और गणराज्‍य के बीच भी यही अन्‍तरविरोध होता है, जो इस तथ्‍य के द्वारा गहरा या गम्‍भीर हो जाता है कि स्‍वतंत्र प्रतियोगिता से इजारेदारी में संक्रमण राजनीतिक स्‍वतंत्रताओं की सिद्धि को और भी अधिक ''कठिन'' बना देता है। तब, फिर पूँजीवाद जनवाद के साथ सामंजस्‍य कैसे स्‍थापित करता है? पूँजी की सर्वशक्तिमानता के परोक्ष अमल के द्वारा। इसके दो आर्थिक साधन होते हैं: (1)प्रत्‍यक्ष रूप से घूस देना; (2) सरकार और स्‍टॉक एक्‍सचेंज का गठजोड़। (यह हमारी प्रस्‍थापनाओं में बताया गया है -- एक बुर्ज़ुआ व्‍यवस्‍था के अन्‍तर्गत वित्‍त पूँजी ''किसी सरकार और किसी अधिकारी को बेरोकटोक घूस दे सकती है और खरीद सकती है।'') एक बार जब माल उत्‍पादन की, बुर्ज़ुआ वर्ग की और पैसे की ताकत की प्रभुत्‍वशील हैसियत बन जाती है -- सरकार के किसी भी रूप के अन्‍तर्गत और जनवाद के किसी भी किस्‍म के अन्‍तर्गत -- (सीधे या स्‍टॉक एक्‍सचेंज के जरिए) घूस देना ''सम्‍भव'' हो जाता है। तब यह पूछा जा सकता है कि पूँजीवाद के साम्राज्‍यवाद की अवस्‍था में पहुँचने, यानी प्राक्-एकाधिकारी पूँजी का स्‍थान एकाधिकारी पूँजी द्वारा ले लेने बाद, इस सम्‍बन्‍ध में कौन सी चीज़ बदल जाती है? सिर्फ यह कि स्‍टॉक-एक्‍सचेंज की ताकत बढ़ जाती है। क्‍योंकि वित्‍त पूँजी औद्योगिक पूँजी का उच्‍चतम, एकाधिकारी स्‍तर होती है, जो बैंकिंग पूँजी के साथ मिल गयी होती है। बड़े बैंक स्‍टॉक एक्‍सचेंज के साथ विलय कर गये हैं या उसे अवशोषित कर चुके हैं। (साम्राज्‍यवाद पर उपलब्‍ध साहित्‍य स्‍टॉक एक्‍सचेंज की घटती भूमिका के बारे में बात करता है, लेकिन केवल इस अर्थ में कि हर दैत्‍याकार बैंक वस्‍तुत: अपने आप में एक स्‍टॉक एक्‍सचेंज है।)''-- व्‍ला.इ. लेनिन: 'ए कैरिकेचर ऑफ मार्क्सिज्‍़म ऐण्‍ड इम्‍पीरियलिस्‍ट इकोनॉमिज्‍़म'


https://www.facebook.com/notes/kavita-krishnapallavi/

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