Tuesday 30 September 2014

सफल रैली का हश्र क्या हुआ ? ---विजय राजबली माथुर

30 सितंबर 2013 की सफल रैली की वर्षगांठ के अवसर पर विशेष :




मैंने गत वर्ष 30 सितंबर 2013 की सफल रैली के बाद डॉ साहब को आगाह करने का प्रयास किया था। :
"जहां तक रैली की भौतिक सफलता का प्रश्न है रैली पूर्ण रूप से सफल रही है और कार्यकर्ताओं में जोश का नव संचार करते हुये जनता के मध्य आशा की किरण बिखेर सकी है। लेकिन क्या वास्तव में इस सफलता का कोई लाभ प्रदेश पार्टी को या राष्ट्रीय स्तर पर मिल सकेगा?यह संदेहास्पद है क्योंकि प्रदेश में एक जाति विशेष के लोग आपस में ही 'टांग-खिचाई' के खेल में व्यस्त रहते हैं। यही वजह है कि प्रदेश में पार्टी का जो रुतबा हुआ करता था वह अब नहीं बन पा रहा है। ईमानदार और कर्मठ कार्यकर्ताओं का उत्पीड़न एक पदाधिकारी विशेष द्वारा निर्लज्ज तौर पर किया जाता है और उसको सार्वजनिक रूप से वाह-वाही प्रदान की जाती है। एक तरफ ईमानदार IAS अधिकारी 'दुर्गा शक्ती नागपाल'के अवैध निलंबन के विरुद्ध पार्टी सार्वजनिक प्रदर्शन करती है और दूसरी तरफ उत्पीड़क पदाधिकारी का महिमामंडन भी। यह द्वंदात्मक स्थिति पार्टी को अनुकूल परिस्थितियों का भी लाभ मिलने से वंचित ही रखेगी। तब इस प्रदर्शन और इसकी कामयाबी का मतलब ही क्या होगा?  "
http://vidrohiswar.blogspot.in/2013/09/3-30.html

मेरे इस आंकलन  का कारण  प्रदीप तेवारी  द्वारा  डॉ साहब पर रैली के संबंध में किया गया यह व्यंग्य है कि वह ग्लैमर में लगे रहते हैं : रैली निकालना उनके बूते की बात नहीं है। जबकि रैली के मंच से राष्ट्रीय सचिव अतुल अंजान साहब ने इस रैली को 'राजनीतिक सन्नाटा तोड़ने वाली रैली' की संज्ञा दी थी। किन्तु तेवारी साहब अपने दबदबे से 'अंजान' साहब के विरुद्ध घृणित प्रचार अभियान चलाते रहते हैं उनकी एक पोस्ट  लगाने के कारण ही मुझे पार्टी ब्लाग के एडमिन व आथरशिप से उन्होने मुझे हटा दिया था जिस कारण मुझे 'साम्यवाद (COMMUNISM)' ब्लाग निकालना पड़ा। 

यह  है पिछली पोस्ट  का एक अंश। कहने की आवश्यकता नहीं है  कि उस सफल  रैली  के बाद मैंने जो आंकलन  किया था वह  शतशः सही निकला  है। डॉ साहब  रमेश कटारा  के नए अवतार  प्रदीप तेवारी  के पूर्ण प्रभाव में उसी प्रकार हैं जिस प्रकार 1992 में आगरा के जिलामंत्री कामरेड रमेश मिश्रा जी  रमेश कटारा के प्रभाव में थे। आगरा में सम्पन्न हुई राज्य काउंसिल के लिए  रमेश कटारा हेतु पार्टी का समर्थन हासिल न कर पाने पर मिश्रा जी ने केंद्रीय कंट्रोल कमीशन के चेयरमेन कामरेड काली शंकर शुक्ला जी से जातिवाद का प्रभाव डाल कर रमेश कटारा को राज्य कंट्रोल कमीशन में नामित करा दिया था। और इसकी कीमत मिश्रा जी को जिलमंत्री पद से नौ वर्ष लगातार वंचित रह कर चुकानी पड़ी थी। 'बोध' होने पर उन्होने रमेश कटारा को पार्टी से निष्कासित करा दिया था एवं पुनः नौ वर्ष आगरा के जिलामंत्री पद पर आसीन रहे ,आज भी वहाँ सर्वमान्य हैं लेकिन इस स्वीकृति हेतु उनको अपनी भूल को सुधारना पड़ा था। 

आज अभी तक  द्वितीय रमेश कटारा:प्रदीप  तेवारी का नशा डॉ साहब के सिर चढ़ कर बोल रहा है। जब पिछली पोस्ट मैंने उनको टैग करना चाहा तो ज्ञात हुआ कि सुबह बर्द्धन जी के जन्मदिन वाली पोस्ट मेरे लगाने के बाद उन्होने खिन्न होकर वह पोस्ट हटा कर मुझे फेसबुक पर ब्लाक कर दिया है। एक तरफ 16 सितंबर 2014 को उन्होने यह स्टेटस दिया था।:















 
http://vijaimathur.blogspot.in/2014/09/blog-post_28.html
कहाँ तो डॉ साहब ' वामपंथियों को जल्द से जल्द ' वास्तविक तथ्य को समझ लेने का आव्हान कर रहे हैं और एकता के पक्ष में सहमति दे रहे हैं लेकिन खुद ही वास्तविकता से आँखें मूँद कर मात्र प्रदीप के मोह में वैसे ही जनता से सिकुड़ी हुई पार्टी को जनोन्मुखी बनाने की बजाए कार्यकर्ताओं के उत्पीड़न में प्रदीप की पक्षधरता कर रहे हैं। फेसबुक पर मुझे ब्लाक करना उसी कड़ी का पहला कदम है और प्रदीप द्वारा मुझे पार्टी ब्लाग की एडमिनशिप से हटाने के कृत्य पर सार्वजनिक रूप से मोहर भी (प्रदीप ने ब्लाग चलाने के छह वर्ष तक न तो शास्त्री जी को न ही डॉ साहब को ब्लाग एडमिन बनाया था बल्कि मैंने न केवल डॉ साहब वरन अरविंद राज जी को भी निवेदन करके ब्लाग एडमिन बनवा दिया था जो कि प्रदीप को खूब अखरा भी था )।प्रदीप उनके फेसबुक पर आने का भी विरोधी था मैंने ही उनको फेसबुक पर आने व सक्रिय होने में सक्रिय सहयोग दिया था। उनको तमाम ग्रुप्स में शामिल किया व अपनी मित्र सूची से उनको फ्रेंड्स सजेस्ट किए थे। जब चल गए तो प्रदीप की गोद में बैठ कर उसके इशारों पर चलने लगे न अपने पद की गरिमा का ख्याल किया न ही व्यक्तिगत कोई ज़रा सा भी लिहाज।  हो सकता है ज़िला सम्मेलन से पूर्व वह मुझे पार्टी से निष्कासित करवाने का  कदम उठा कर प्रदीप को और भी खुश करें। पुरानी कहावत है :'काजर की कोठरी  में कैसे हु सयानों जाये एक लीक काजर की लागिहे पे लागिहे । ' यही बात डॉ साहब पर अब बखूबी चस्पा हो रही है। जब वह  हाथरस से रामवीर उपाध्याय के विरुद्ध चुनाव लड़ रहे थे तब ब्राह्मण बहुल क्षेत्र में 'डॉ गिरीश' नाम से किन्तु पोंगापंथी प्रदीप से प्रभावित होकर अब :
13 जूलाई 2013 की ज़िला काउंसिल बैठक के तुरंत बाद डॉ साहब ने प्रदीप की उपस्थिती में ही अंजान साहब को बताया था कि एक दिन पूर्व जब वह बांदा जा रहे थे उनकी जीप का विंड मिरर धमाके के साथ ब्लास्ट कर गया था और उसके काँच के घाव उनके शरीर पर भी थे जिन्हे उन्होने अंजान साहब को दिखाया भी था। संभवतः यह प्रदीप की कोई 'तांत्रिक करामात' ही होगी जिसने डॉ साहब के दिमाग को उसी प्रकार अपने कब्जे में कर रखा है जिस प्रकार तब रमेश कटारा ने रमेश मिश्रा जी के साथ कर रखा था।डॉ साहब ने स्वतः ही अंजान साहब को अपनी यह खूबी भी बताई थी कि उन्होने फारवर्ड ब्लाक के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष राम किशोर जी को उनकी पार्टी से निकलवा दिया है । उन्होने उनको अपने सेक्रेटरी से सफलता पूर्वक भिड़ा दिया था। बड़े ही गर्व के साथ डॉ साहब ने यह भी बताया था कि फारवर्ड ब्लाक के  नए प्रदेश अध्यक्ष और सेक्रेटरी को उन्होने अलग-अलग अपने कब्जे में कर रखा है। 
  जी पी ओ पार्क,लखनऊ स्थित गांधी प्रतिमा पर महिला फेडरेशन के एक धरने  के दौरान डॉ साहब ने प्रदीप व मेरे मध्य साँप-नेवले के संबंध की बात कही थी। कहाँ तो प्रदीप प्रदेश कोषाध्यक्ष और कहाँ मैं ज़िला काउंसिल का सदस्य दोनों के मध्य प्रतिद्वंदिता अथवा समानता की बात ही कहाँ थी? परंतु डॉ साहब ऐसी तुलना कर रहे थे क्यों? 
मई 2012 में डॉ साहब ने खुद अपनी जन्मपत्री का व 06-11-12 को अपनी पत्नी की जन्मपत्री का तथा प्रदीप ने 12-11-12 को अपनी पुत्री की जन्मपत्री का विश्लेषण मुझसे निशुल्क प्राप्त किया था । किन्तु ये दोनों उसी प्रकार मेरा अनर्गल विरोध कर रहे हैं जिस प्रकार प्रदीप की भाभी की मित्र पूना प्रवासी भृष्ट-धृष्ट ब्लागर ने चार जन्मपत्रियों  का निशुल्क विश्लेषण प्राप्त करके ब्लाग जगत में किया था। क्या एक निकृष्ट ब्लागर और इन बड़े राजनेताओं में कोई फर्क नहीं होना चाहिए था?

 परंतु गलत व्यक्ति को लाभ पहुंचा कर न तो पार्टी को मजबूत बनाया जा सकता है न ही जनता के मध्य लोकप्रिय। 
http://communistvijai.blogspot.in/2013/12/blog-post_24.html

Tuesday, 24 December 2013


अवाम की आवाज़ और चेहरा :लखनऊ की शान और उत्तर प्रदेश का सितारा - अतुल अनजान:

"कामरेड अतुल अनजान लखनऊ विश्वविद्यालय छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष और AISF के भी पूर्व अध्यक्ष तो हैं ही। वर्तमान में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के 'राष्ट्रीय सचिव' तथा AIKS-अखिल भारतीय किसानसभा के 'राष्ट्रीय महामंत्री हैं'।  न केवल अपनी ओजस्वी वाक-शैली वरन जनता के मर्म को समझने वाले एक जन-प्रिय नेता के रूप में भी जाने जाते हैं। 

यदि भाकपा केंद्रीय नेतृत्व उनके राष्ट्रीय कृत्यों के अतिरिक्त उत्तर प्रदेश में पार्टी के पथ -प्रदर्शक के रूप में उनको अतिरिक्त भार  दे दे  तो पार्टी को अत्यंत लाभ हो सकता है। "  

मेरी उपरोक्त पोस्ट भी डॉ साहब व प्रदीप को नागवार गुज़री थी किन्तु यह हकीकत है कि यदि उत्तर-प्रदेश में भाकपा को मजबूत करना है तो अंजान साहब का सहयोग लेना ही पड़ेगा जो कि डॉ साहब व प्रदीप गठबंधन के पूर्वाग्रहों के कारण संभव नहीं है क्योंकि अंजान साहब की मौजूदगी में प्रदीप निर्बाध मनमानी नहीं चला सकेगा जैसी की डॉ साहब की कृपा से अभी चला रहा है और पार्टी को निरंतर सिकोड़ता जा रहा है। 

उदारता एक मानवीय गुण है सभी को उदार होना चाहिए किन्तु उसके साथ-साथ पात्र की अनुकूलता भी होनी चाहिए। :

विगत वर्ष (30 सितंबर 2013 ) को आगरा के एक वरिष्ठ कामरेड  साहब से  रैली स्थल पर भेंट हुई थी तब वह मंच की ओर पीठ कर के खड़े हुये थे(जबकि आगरा में मैंने उनके व डॉ साहब के  मध्य मधुर संबंध देखे थे )।  इस दृष्टांत से पूर्व जिलामंत्री  डॉ जवाहर सिंह धाकरे साहब द्वारा दी गई इस जानकारी की पुष्टि हो गई कि चंडीगढ़ के महिला फेडरेशन के कार्यक्रम हेतु ट्रेन में जाते समय उन वरिष्ठ कामरेड की कामरेड पत्नी को  डॉ साहब अभद्र व अश्लील चुट्कुले सुनाते गए थे। आगरा के तत्कालीन जिलामंत्री कामरेड रमेश मिश्रा जी ने तबके प्रदेश सहायक सचिव डॉ साहब को इस बात के लिए कड़ी फटकार लगाई थी और भविष्य में फिर ऐसा न करने का आश्वासन देकर डॉ साहब ने पिंड छुड़ाया था। फिर भी इस जानकारी के बावजूद  भी मैंने लखनऊ में उनके प्रति उनके द्वारा बताई बात कि उनकी बीमारी के कारण यहाँ के कामरेड्स उनसे घृणा करते हैं उनके प्रति उदार रवैया अपनाया था । किन्तु डॉ साहब उस उदारता हेतु अनुकूल पात्र नहीं निकले। 

डॉ साहब के रुष्ट होने का एक बड़ा कारण उनके एक फेसबुक मित्र को 07 अगस्त को भेजा मेरा यह संदेश भी हो सकता है :

"आदरणीय कामरेड, लाल सलाम, उम्मीद है कि आप सपरिवार कुशल-मंगल होंगे। कुछ ज़रूरी सूचना देना चाहता हूँ और उम्मीद करता हूँ कि आप अन्यथा न लेंगे। 05 अगस्त को एक प्रो ए के सिंह (का. अशोक कुमार सेठ ) आए थे और लगभग ढाई घंटे बैठे थे । आते ही उनका कहना था कि डॉ गिरीश जी के आदेश से आए हैं व उनको मेरा फोन न . कामरेड ख़ालिक़ ने दिया था। उनकी तमाम बातों का लबबों-लुआब यह था कि मुझको कामरेड अतुल अंजान साहब का विरोध करना चाहिए। चुप-चाप उनकी सारी बातें सुन ली किन्तु जब उनके द्वारा प्रदीप तिवारी की बात सुनी तो मैंने उनको स्पष्ट कर दिया था कि वही पार्टी को क्षति पहुंचा रहा है और कामरेड अंजान साहब नहीं। फिर कल 06 अगस्त को उनका फोन आया कि पार्टी आफिस में उनकी डेढ़ घंटे गिरीश जी से बातें हुईं व वह प्रदीप का ठोस समर्थन कर रहे हैं। आप लोग अतुल जी का विरोध करें या प्रदीप तिवारी का समर्थन करें इसमें मेरा तो कोई वास्ता नहीं है। किन्तु मैं भी अतुल जी का विरोध करूँ इसकी क्या ज़रूरत है ?मैं ऐसा नहीं कर सकता। हाँ मैं प्रदीप तिवारी का विरोध करता रहूँगा क्योंकि उस कमबख्त ने 13 जूलाई 2013 की ज़िला काउंसिल बैठक में मेरे पेट में न केवल उँगलियाँ भोंकी बल्कि मेरे पैरों पर अपनी लातों से भी प्रहार किया था। मुझे मालूम चला है कि प्रदीप मुझे पार्टी से निष्कासित कराना चाहता है और वह ऐसा कर सकता है। मोहम्मद ख़ालिक़ या अकरम की तरह मेरी कोई दूकानदारी पार्टी के दम पर नहीं चल रही है और न ही पार्टी के दम पर प्रदीप की तरह मैं किसी बैंक मेनेजर या व्यापारियों को ब्लैकमेल कर रहा हूँ जो मुझे निष्कासित होने पर घाटा हो जाएगा। उस सूरत में मैं तो प्रदीप तिवारी के विरुद्ध FIR करने के लिए स्वतंत्र हो जाऊंगा। आपसे सानुरोध विनम्र प्रार्थना है कि डॉ गिरीश जी से कहें कि जिस प्रकार उन्होने प्रो साहब को मेरे पास आने का आदेश दिया है उसी प्रकार उनको मुझसे मिलने से मना कर दें। वरना उनका फोन आने पर मैं खुद तो मना कर ही दूँगा और घर पर फिर भी आ गए तो उसी प्रकार बैरंग कर दिया जाएगा  जिस प्रकार प्रदीप तिवारी के इशारे पर आने वाले कामरेड राम किशोर जी को प्रतिबंधित कर दिया है। अपने ब्लाग्स व फेसबुक के माध्यम से मैं प्रदीप तिवारी का विरोध व अतुल अंजान साहब का समर्थन जारी रखूँगा। उसके लिए डॉ गिरीश जी की बात नहीं मानी जा सकती हैं। वैसे व्यक्तिगत रूप से डॉ गिरीश जी का सम्मान करता रहूँगा। धन्यवाद।"

(इस  पूरे मेसेज को डॉ साहब द्वारा सेठ साहब को पहुंचा दिया गया था जैसा कि सेठ साहब ने 24 अगस्त की काउंसिल बैठक के बाद ज़िक्र किया था।क्या यह डॉ साहब के ओहदे के अनुकूल प्रक्रिया हुई?) 

 अब आज 30 सितंबर 2013 की सफल रैली की वर्षगांठ के अवसर पर विगत एक वर्ष की असफलताओं का लेखा-जोखा करते हुये भविष्य में उनसे बचाने व सुधार का संकल्प लेना चाहिए; तभी भाकपा का भविष्य उज्ज्वल बनाया जा सकता है।

Friday 26 September 2014

डॉ गिरीश से लखनऊ में भेंट की पाँचवीं वर्षगांठ पर विशेष -----विजय राजबली माथुर





आगरा से लखनऊ आने के बाद मैंने भाकपा कार्यालय,क़ैसर बाग जाकर डॉ गिरीश साहब  से मिलने के प्रयत्न कई बार किए किन्तु वह अक्सर टूर पर होते थे और कामरेड अशोक मिश्रा जी भी नहीं मिल पाये थे। मैं आगरा से ही इन दोनों नेताओं से ही परिचित था तथा लखनऊ के और कामरेड्स से अनभिज्ञ था।किन्तु 25 सितंबर 2010 को मुझे लखनऊ में डॉ गिरीश साहब से भेंट करने का सुअवसर मिल ही गया और उन्होने पहचान भी लिया तथा लगभग तीन घंटे का समय मुझसे बात-चीत करने में व्यय  भी किया। इसी दौरान महिला फेडरेशन की वरिष्ठ नेत्री कामरेड आशा मिश्रा जी का भी आगमन हुआ और डॉ साहब ने उनसे भी मेरा परिचय करवाया जबकि वरिष्ठ नेता कामरेड अशोक मिश्रा जी से पूर्व परिचित था ही।

नितांत व्यक्तिगत आधार पर हुई इस भेंट में डॉ साहब ने यह भी बताया था कि यहाँ लखनऊ में उनकी बीमारी के चलते साथी कामरेड्स उनसे घृणा करते हैं तथा उनको सहयोग नहीं करते हैं। मेरा यहाँ निवास नौ किलो मीटर दूर होने के बावजूद कभी-कभी उनसे मिलते रहने को उन्होने मुझसे  कहा जिसका पालन मैंने अक्सर ही किया क्योंकि  पूर्व परिचय रहने तथा उनकी व्यथा सुनने के बाद उनसे व्यतिगत रूप से सहानुभूति भी मुझे हो गई थी।

डॉ साहब ने 'पार्टी जीवन' अखबार के लिए प्रधान संपादक की हैसियत से उनको  सहयोग करने को मुझसे 2011 में कहा मैं तो उनके आदेश का पालन करने को तत्पर था किन्तु कार्यकारी संपादक को ठीक न लगा। AISF की 75 वीं वर्षगांठ के अवसर पर भी डॉ साहब के निर्देश पर मैं लगातार पार्टी कार्यालय जाता रहा और इस बात का ज़िक्र उन्होने समापन गोष्ठी में मेरे नाम का भी उल्लेख उनको सहयोग देने वालों की सूची में जोड़ कर किया। 

मई 2013 में एक बार फिर डॉ साहब ने 'पार्टी जीवन' हेतु मेरी सेवाएँ लेने की बात कही और इस बार उन्होने पुराने कंप्यूटर की मरम्मत करवाकर मुझे कार्य करने हेतु उपलब्ध करा दिया। तमाम दूसरे लोगों को भी बुरा लगा हो सकता है किन्तु कार्यकारी संपादक को  मैं उनका प्रतिद्वंदी नज़र आने लगा कि कहीं उनसे कार्य छीनने की डॉ साहब की चाल तो नहीं है जबकि ऐसा था नहीं क्योंकि एक बार खुद डॉ साहब ने उनको कहा था कि तुमको 'हैंड ' की ज़रूरत थी तुमको 'हैंड' दे दिये हैं।लेकिन उस शख्स को किसी ईमानदार आदमी की ज़रूरत नहीं थी जो डॉ साहब ने मेरे रूप में उनको सुपुर्द किया था। उस शख्स का मुझसे शुरू -शुरू में ही यह  कहना था  कि यहाँ (पार्टी कार्यालय ) में हर एक का कमीशन तय है और हर काम में लोग अपना कमीशन लेते हैं जबकि मैं तो जिस प्रकार आगरा में पार्टी हित में अपनी सेवाएँ देता था उसी अनुरूप प्रदेश कार्यालय के लिए भी कर रहा था। अतः  कार्यकारी संपादक के लिए बाधक व अनफ़िट था। बीच में कार्यकारी संपादक ने एक और पाँसा फेंकते हुये डॉ साहब से मुझे पार्टी की ओर से 'वेज' लेने का प्रस्ताव दिलाया परंतु मैंने डॉ साहब को स्पष्ट कह दिया कि आपके आदेश का अनुपालन करने हेतु एक कार्यकर्ता की हैसियत से योगदान कर रहा हू और निशुल्क सेवाएँ देता रहूँगा। परंतु का .स . को ऐसा व्यक्ति चाहिए था जो पैसा लेकर दब कर गलत कार्य कर सके अतः मुझे परेशान करने  हेतु  13 जूलाई 2013 की पार्टी ज़िला काउंसिल की बैठक में उसने  अपने एक निष्क्रिय मित्र के सहायक के रूप में मुझसे कार्य कराने का प्रस्ताव डॉ साहब से रखवाया और उसे स्वीकार करने हेतु व्यक्तिगत रूप से मेरे पैरों पर अपने पैरों से प्रहार किया । 

बैठक के तुरंत बाद डॉ साहब से कामरेड अतुल अंजान साहब की उपस्थिति में मैंने उसके मित्र का सहायक बनने से स्पष्ट इंकार कर दिया व उसके बाद से 'पार्टी जीवन' के लिए भी कार्य करना छोड़ दिया। तब से वह शख्स मुझे अपना निजी दुश्मन  मान कर लगातार विभिन्न तरीकों से परेशान करता आ रहा है। एक तो खुद को 'एथीस्ट ' घोषित करता है दूसरी ओर कंट्रोल कमीशन के पूर्व सदस्य रमेश कटारा की भांति 'तांत्रिक' प्रक्रियाँओं से भी उत्पीड़न करता आ रहा है।



जैसा कि प्रस्तुत फोटो से स्पष्ट है वह शख्स निजी रूप से मुझे प्रताड़ित  करने हेतु कपोल-कल्पित बातें गढ़ता रहता है। मैंने गत वर्ष 30 सितंबर 2013 की सफल रैली के बाद डॉ साहब को आगाह करने का प्रयास किया था।
"जहां तक रैली की भौतिक सफलता का प्रश्न है रैली पूर्ण रूप से सफल रही है और कार्यकर्ताओं में जोश का नव संचार करते हुये जनता के मध्य आशा की किरण बिखेर सकी है। लेकिन क्या वास्तव में इस सफलता का कोई लाभ प्रदेश पार्टी को या राष्ट्रीय स्तर पर मिल सकेगा?यह संदेहास्पद है क्योंकि प्रदेश में एक जाति विशेष के लोग आपस में ही 'टांग-खिचाई' के खेल में व्यस्त रहते हैं। यही वजह है कि प्रदेश में पार्टी का जो रुतबा हुआ करता था वह अब नहीं बन पा रहा है। ईमानदार और कर्मठ कार्यकर्ताओं का उत्पीड़न एक पदाधिकारी विशेष द्वारा निर्लज्ज तौर पर किया जाता है और उसको सार्वजनिक रूप से वाह-वाही प्रदान की जाती है। एक तरफ ईमानदार IAS अधिकारी 'दुर्गा शक्ती नागपाल'के अवैध निलंबन के विरुद्ध पार्टी सार्वजनिक प्रदर्शन करती है और दूसरी तरफ उत्पीड़क पदाधिकारी का महिमामंडन भी। यह द्वंदात्मक स्थिति पार्टी को अनुकूल परिस्थितियों का भी लाभ मिलने से वंचित ही रखेगी। तब इस प्रदर्शन और इसकी कामयाबी का मतलब ही क्या होगा?  "
http://vidrohiswar.blogspot.in/2013/09/3-30.html

मेरे इस आंकलन  का कारण  प्रदीप तेवारी  द्वारा  डॉ साहब पर रैली के संबंध में किया गया यह व्यंग्य है कि वह ग्लैमर में लगे रहते हैं : रैली निकालना उनके बूते की बात नहीं है। जबकि रैली के मंच से राष्ट्रीय सचिव अतुल अंजान साहब ने इस रैली को 'राजनीतिक सन्नाटा तोड़ने वाली रैली' की संज्ञा दी थी। किन्तु तेवारी साहब अपने दबदबे से 'अंजान' साहब के विरुद्ध घृणित प्रचार अभियान चलाते रहते हैं उनकी एक पोस्ट  लगाने के कारण ही मुझे पार्टी ब्लाग के एडमिन व आथरशिप से उन्होने मुझे हटा दिया था जिस कारण मुझे 'साम्यवाद (COMMUNISM)' ब्लाग निकालना पड़ा।

 कल दिनांक 24 सितंबर 2014 की ज़िला काउंसिल द्वारा 'चुनाव समीक्षा' बैठक में ज़िला इंचार्ज के नाते तेवारी साहब ने जिला मंत्री द्वारा एक प्रस्ताव के जरिये 60 वर्ष की आयु से अधिक के कामरेड्स के पदाधिकारी बनने पर रोक लगवा दी है। यदि इस प्रस्ताव को प्रदेश में भी लागू करवाया जा सका तो प्रदेश सचिव डॉ साहब व प्रदेश के सहायक सचिव अरविंद जी भी दौड़ से बाहर हो जाएँगे और तेवारी साहब का रास्ता 'निष्कंटक ' हो जाएगा।

Communist veteran A.B. Bardhan, who turns 90 on Thursday

8 hrs ·(25-09-2014)
Don’t want to blame others, so no memoir: Bardhan
Ninety years is not short, even in the history of a nation. Communist veteran A.B. Bardhan, who turns 90 on Thursday, was born when India was still under colonial rule, participated in the freedom struggle and has closely seen all prime ministers and political trends in independent India. But writing a memoir is not part of his plans, and he would rather fade away without stating “all those hurtful truths.”
“Biographies are being written by all and sundry, which anyway is an exercise in self-congratulation and meant to blame others. I will not write,” he said sitting in Ajoy Bhawan — the sleepy multi-storey headquarters of the Communist Party of India (CPI) that at once reminds one of the bygone sway and the current marginalisation of the Left in India.
Of his 90 years, he spent four in jail, three of them in independent India. For the past 30 years, he has been living in a single-room quarters of Ajoy Bhawan and has never occupied a Lutyens’ Delhi bungalow, though he had one allotted to him as general secretary of the party.
He repeats the late Marxist Jyoti Basu’s statement that not accepting the Prime Minister’s post in 1996 was a “historic blunder” of the Left. “That was an opportunity, a lost one, to show to the country that Communist politics is different. Within the limitations of a capitalist system also, we must have tried that.”
Mr. Bardhan said the parting of ways with the Congress in 2008 was another “wrong move” of the Left, which triggered a series of developments that created a “vacuum that has now been occupied by rightist forces led by an authoritarian leader.”
When his politics started, freedom was imminent and socialism appeared achievable. “We were happy those days, as things that we struggled for were being achieved,” Mr. Bardhan said admitting that the dreams of those days had only become more distant. “For the Left to survive, it has to rediscover, reform and attune itself to the realities of the present.”

Tuesday 23 September 2014

लखनऊ पूर्व से भाकपा प्रत्याशी रहे कामरेड राजपाल द्वारा चुनाव समीक्षा

  लोकसभा और विधानसभा मतदाता सूचियों में अंतर एक साजिश
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Rajpal urf Raju Yadav <rajpal.raju0108@gmail.com>

9:45 AM
लखनऊ ,23 सितंबर 2014 । भाकपा के नगर सचिव और लखनऊ पूर्व से प्रत्याशी रहे कामरेड राजपाल उर्फ राजू यादव ने आज यहाँ एक बयान जारी करके यह रहस्योद्घाटन किया कि मई 2014 के लोकसभा चुनावों में अपने मताधिकार का प्रयोग कर चुके तमाम यादव मतदाताओं के नाम सितंबर 2014 में हुये विधानसभा चुनाव की मतदाता सूचियों से गायब पाये गए हैं। ये सभी यादव मतदाता किसके इशारे पर मतदान से वंचित किए गए हैं? राजपाल ने बताया कि यह बात जग ज़ाहिर है कि अखिलेश यादव जी के मुख्यमंत्री रहते उनके इशारे के बगैर उनके सजातीय यादव मतदाताओं के नाम मतदाता सूची से काटने का साहस सरकारी कर्मचारियों व अधिकारियों में हो ही नहीं सकता। अतः यह खेल प्रदेश सरकार की एक सोची समझी साजिश है जिसके जरिये भाजपा प्रत्याशी को आसान जीत दिलाई गई है। उन्होने जनता का आह्वान किया कि सपा-भाजपा की इस मिलीभगत की साजिश से सावधान रहे।

टंडन जी की जीत में मायावती जी का भी योगदान

टंडन जी की जीत में मायावती जी का भी योगदान

Rajpal urf Raju Yadav <rajpal.raju0108@gmail.com>

3:47 PM (18-09-2014 )
लखनऊ,17 सितंबर 2014, लखनऊ पूर्व से भाकपा प्रत्याशी रहे कामरेड राजपाल उर्फ राजू यादव ने आज यहाँ अपने फैजुल्लागंज स्थित निवास पर अपने सहयोगियों को धन्यवाद देने हेतु बुआई गई एक बैठक में बोलते हुये यह रहस्योद्घाटन भी किया कि चुनाव में जीत हासिल करने वाले आशुतोष टंडन जी के पिता श्री लालजी टंडन और मायावती जी के बीच बहन-भाई के पुराने रिश्ते हैं और वह उनको राखी भी बांधती रही हैं। इस चुनाव में मायावती जी ने अपने भतीजे आशुतोष टंडन जी को जितवाने के लिए अपने समर्थक लगभग बीस हज़ार वोट उनको ट्रांसफर करा दिये। इस कारवाई को छिपाए रखने के लिए एक निर्दलीय प्रत्याशी को समर्थन देने का झूठा स्वांग भी रच डाला। लेकिन कुल 27 हज़ार समर्थक वोटों में से उस निदलीय को केवल 7 हज़ार वोट मिलना यह साबित करता है कि बाकी वोट टंडन जी को पड़वाये गए थे।
राजपाल ने बताया कि आगामी चुनावों में हमें सपा-बसपा-भाजपा के मिले जुले खेल को अच्छी तरह समझते हुये चुनाव लड़ना होगा। उन्होने अपने सभी सहयोगियों के प्रति आभार जताया कि कठिन हालत के होते हुये भी उन्होने जी जान से इस चुनाव को लड़वाया और आगे भी सबसे सहयोग मिलने की उनको पूरी पूरी आशा है। सभी जनों ने उनको आश्वस्त किया कि वे अपना सहयोग पूर्व वत जारी रखेंगे।
राजपाल उर्फ राजू यादव
नगर सचिव ,भाकपा, लखनऊ
एवं पूर्व प्रत्याशी-लखनऊ पूर्व

 

 

सपा व भाजपा पर मिलीभगत का आरोप

:लखनऊ पूर्व से भाकपा प्रत्याशी रहे राजपाल उर्फ राजू यादव द्वारा सपा व भाजपा पर मिलीभगत का आरोप

Rajpal urf Raju Yadav <rajpal.raju0108@gmail.com>

3:25 PM (18-09-2014 )
लखनऊ,17 सितंबर 2014, आज यहाँ जारी एक बयान में लखनऊ पूर्व से भाकपा प्रत्याशी रहे कामरेड राजपाल उर्फ राजू यादव ने भाजपा और सपा में मिलीभगत होने का गंभीर आरोप लगाया है। उनका कहना है कि लोकसभा चुनावों के समय सपा ने भाजपा को जिताने में मदद की थी। अगर ऐसा न होता और मोदी लहर का कोई करिश्मा होता तो मुलायाम परिवार का एक भी सदस्य चुनाव क्यों नहीं हारा ?जबकि सभी को हारना चाहिए था। लेकिन भाजपा ने मुलायम परिवार के किसी भी सदस्य को नहीं हराया था जो उन दोनों में मिलीभगत होने का संकेत था। अब विधानसभा उप चुनावों में भाजपा ने उस एहसान का बदला चुकाने के लिए पूर्व में खुद जीती अपनी सीटें सपा को भेंट कर दी हैं। आदित्यनाथ का बयान भ्रामक है वह या उनकी पार्टी कोर्ट में जाकर उनकी सभाए होना सुनिश्चित कर सकती थी। लेकिन तय प्रोग्राम के अनुसार उनको सभी विधानसभा क्षेत्रों में नहीं भेजा गया था। लखनऊ गृहमंत्री राजनाथ सिंह जी का संसदीय क्षेत्र है और यह सीट उनको लालजी टंडन के स्थान पर मिली थी इसलिए वह टंडन जी के पुत्र को विधानसभा में भेजना चाहते थे। उनको मुलायम सिंह जी ने उसी तरह मदद की जैसी लोकसभा चुनावों में की थी। आशुतोष टंडन जी की यह जीत जनता के साथ सपा -भाजपा गठजोड़ द्वारा किया गया एक बहुत बड़ा धोखा है।
राजपाल उर्फ राजू यादव
नगर सचिव, भाकपा, लखनऊ
एवं पूर्व प्रत्याशी- लखनऊ पूर्व

भाकपा प्रत्याशी कामरेड राजपाल का संक्षिप्त परिचय



Rajpal urf Raju Yadav <rajpal.raju0108@gmail.com>

Sep 8 



173 लखनऊ पूर्व से भारतीय कम्युनिस्ट के प्रत्याशी 42 वर्षीय  कामरेड राजपाल उर्फ राजू यादव,नगर सचिव,भाकपा लगभग 22 वर्षों से छात्र व किसान आंदोलनों में संघर्ष रत  हैं। इनके पिताजी स्व.श्रीपाल यादव एक कर्तव्यनिष्ठ व ईमानदार किसान थे। उनसे ये गुण राजपाल जी को विरासत में मिले हैं। 

एक साक्षात्कार में उन्होने बताया कि उनका चुनाव लड़ने का उद्देश्य मात्र मेहनतकश मजदूर,पटरी दुकानदार,किसान व क्षेत्र के चौतरफा विकास जैसे-सड़क,नाली,सीवर,लाईट,विद्युत की कमी को दूर करने,बच्चों को अच्छी व सस्ती शिक्षा उपलब्ध कराने बेरोजगारों को रोजगार मुहैया कराने,महिलाओं को रक्षा व सुरक्षा दिलाने,पुलिस उत्पीड़न को रोकने तथा सत्ताधारी पार्टियों द्वारा समाज ,क्षेत्र व देश में भाई-चारे को खत्म करने की साजिश को विफल करना है क्योंकि सांप्रदायिकता से इंसानी जीवन को खतरा पैदा हो गया है। 

एक मात्र भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ही ऐसा राजनीतिक दल है जो इंसानी रिश्ते और भाई- चारे तथा देश के चौतरफा विकास पर विश्वास करता है। उनको पूरी उम्मीद है कि इस बार जनता उन्हें भारी मतों से विजयी बना कर विधासभा में भेजेगी जिससे उसकी आवाज़ बुलंदगी से शासकों के समक्ष उठाई जा सके। 

Tuesday 16 September 2014

क्या माकपा और क्या भाकपा दोनों का एक ही हाल है---विजय राजबली माथुर

एक जिम्मेदार ओहदे पर होते हुये भी एक एथीस्ट साहब मेरे विरुद्ध कुत्सित भ्रामक प्रचार करने में संलिप्त रहते हैं। पार्टी हित में उनका कदम कितना अनुकूल है? वह इसी प्रकार हतोत्साहित करके पार्टी कार्यकर्ताओं का उत्पीड़न करने में मशगूल रहते हैं। क्या उनके प्रयास पार्टी को मजबूत करने वाले हैं? जिस बयान को वह मेरी लेखनी बता रहे हैं उसके विचारों से मैं पूरी तरह असहमत हूँ और यह बात मैंने बयानदाता भाकपा प्रत्याशी को स्पष्ट भी कर दी थी। किन्तु आदित्यनाथ का प्रतिवाद होने के कारण उसे मैंने भी शेयर कर दिया था।
लेकिन हिंदूमहासभा और आर एस एस के प्रखर नेता व सांसद आदित्यनाथ का बचाव करने हेतु कम्युनिस्ट रूप धारी ढ़ोंगी पोंगा-पंडितवाद के संरक्षक ने जिस प्रकार व्यक्तिगत रूप से मेरा नाम लेकर मेरे ऊपर प्रहार किया है वह अकारण नहीं है। क्योंकि मैं उस ढ़ोंगी द्वारा उपेक्षित किए जाने वाले अपने वरिष्ठ नेता गण -कामरेड ए बी वर्द्धन साहब और कामरेड अतुल अंजान साहब के बयानों को अपने ब्लाग्स में ससम्मान स्थान देता हूँ और पार्टी ओहदे से निजी अवैध कमाई करने वाला और मूल रूप से आर एस एस से सहानुभूति रखने वाला यह पोंगापंडितवादी अपने ही दल के इन वरिष्ठ नेताओं के प्रति घृणा भाव से ग्रसित है तब उसके लिए मैं किस खेत की मूली हूँ?*
— with Vijai Raj Vidrohi and 10 others.
  • Wednesday, 11 September 2013


    यह नया ब्लाग क्यों बना?---विजय राजबली माथुर

    मैंने 'भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी' ब्लाग में पाँच सितंबर 2013 को कामरेड अतुल अंजान साहब की मऊ  में सम्पन्न रैली के समाचार की कटिंग देते हुये एक पोस्ट निकाली थी। इस पोस्ट को प्रदीप तिवारी साहब ने इसलिए हटा दिया क्योंकि वह अपने राष्ट्रीय सचिव कामरेड  अतुल अंजान साहब को व्यक्तिगत रूप से  नापसंद करते हैं। इतना ही नहीं इस पोस्ट के प्रकाशन का दायित्व मेरा था इसलिए मुझको भी ब्लाग एडमिन एंड आथरशिप से हटा दिया। 

    पिछले छह वर्षों से उक्त ब्लाग संचालित हो रहा है परंतु पी टी साहब ने न तो पूर्व और न ही वर्तमान प्रदेश सचिव कामरेड को ब्लाग एडमिन बनाया था। मैंने न केवल प्रदेश सचिव कामरेड डॉ गिरीश को बल्कि प्रदेश सह सचिव कामरेड  डॉ अरविंद राज स्वरूप को भी ब्लाग एडमिन एंड आथर बनने का निवेदन किया जिसे उन दोनों ने स्वीकार कर लिया था। यह भी एक कारण प्रदीप तिवारी द्वारा मुझसे खार खाने का था जो मुझे हटाने का हेतु बना क्योंकि वह पार्टी ब्लाग व पार्टी अखबार को खुद की निजी मिल्कियत समझते हैं । अतः यह नया ब्लाग अस्तित्व में आया  जिसके द्वारा अपने राष्ट्रीय नेताओं के विचारों को आपके समक्ष प्रस्तुत किया जा रहा है।  http://communistvijai.blogspot.in/2013/09/blog-post_11.html

Friday 12 September 2014

प्रगतिशील साहित्य बिक्री केंद्र का शुभारम्भ---डॉ गिरीश

प्रगतिशील साहित्य बिक्री केंद्र का शुभारम्भ
लखनऊ- वैज्ञानिक समाजवाद, इतिहास, संस्कृति, विज्ञान एवं बालोपयोगी अनूठी पुस्तकों के बिक्री केन्द्र का शुभारम्भ आज यहां २२,कैसरबाग स्थित परिसर में होगया.
प्युपिल्स पब्लिशिंग हाउस, नई दिल्ली के सौजन्य से प्रारंभ पुस्तक केन्द्र का उद्घाटन प्रख्यात लेखक-समालोचक एवं प्रगतिशील लेखक संघ के अध्यक्ष श्री वीरेंद्र यादव ने किया.
अपने उद्बोधन में श्री यादव ने कहा कि चेतना बुक डिपो के बंद होने के बाद से इस तरह की पुस्तकों के केन्द्र की कमी बेहद अखर रही थी. अब ज्ञान के पिपासु और सामाजिक चेतना के वाहकों को प्रगतिशील साहित्य की खरीद के लिए भटकना नहीं पड़ेगा. उन्होंने पुस्तक केन्द्र खोलने के लिये पी.पी.एच. एवं स्थानीय संचालकों को बधाई दी.
वरिष्ठ रंग कर्मी और भारतीय जन नाट्य संघ के प्रदेश महासचिव राकेश ने कहाकि २२, केसरबाग परिसर विविध साहित्यिक, सांस्कृतिक, सामाजिक और राजनैतिक गतिविधियों का केन्द्र रहा है. अब सामाजिक आर्थिक बदलाव की चेतना जाग्रत करने वाला साहित्य भी यहाँ मिल सकेगा, यह पाठकों के लिए ख़ुशी की बात है.
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के प्रदेश सचिव डा.गिरीश ने कहा कि ज्ञान की ताकत हर ताकत से बढ़ी होती है, लेकिन सवाल यह है कि ज्ञान का आधार वैज्ञानिक है या पुरातनपंथी. वह सामाजिक परिवर्तन- व्यवस्था परिवर्तन के लिए स्तेमाल होरहा है अथवा लूट और दमन के चक्र को बनाये रखने के लिये. यहां उपलब्ध पुस्तकों से शोषण से मुक्त व्यवस्था निर्माण का मार्ग प्रशस्त होता है.
इस अवसर पर भाकपा के राज्य सहसचिव अरविन्दराज स्वरूप, उत्तर प्रदेश ट्रेड यूनियन कांग्रेस के प्रदेश महासचिव सदरुद्दीन राना, उत्तर प्रदेश महिला फेडरेशन की महासचिव आशा मिश्रा, उत्तर प्रदेश किसान सभा के महासचिव रामप्रताप त्रिपाठी, उत्तर प्रदेश खेत मजदूर यूनियन के महासचिव फूलचंद यादव, भाकपा के जिला सचिव मो. खालिक आदि अनेक गणमान्य अतिथि मौजूद थे जिन्होंने अपनी शुभकामनायें व्यक्त कीं.
कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ भाकपा नेता अशोक मिश्रा ने की. पुस्तक केन्द्र के संचालक रामगोपाल शर्मा ने बताया कि केन्द्र प्रतिदिन प्रातः १० बजे से सायं ७ब्जे तक खुला रहेगा.

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11 सितंबर को उद्घाटित  यह प्रगतिशील साहित्य बिक्री केंद्र कुल एक माह भी न चल सका और बंद हो गया आखिर क्यों? :

संचालक रामगोपाल शर्मा जी के पारिश्रमिक के रूप में PPH , दिल्ली से रु 5000/- का चेक भाकपा, उत्तर प्रदेश के नाम से भेजा गया और उसमें से 3500/- रु काट कर मात्र 1500/- रु संचालक महोदय को देने का प्रस्ताव किया गया। यदि  PPH , दिल्ली से कोई भुगतान न आता तो शायद संचालक महोदय निशुल्क अपनी सेवाएँ प्रदान कर देते। किन्तु किसी पूंजीपति की भांति ही किसानों -मजदूरों की अपनी पार्टी के संचालक केंद्र संचालक के वेतन का शोषण कर डालें यह एक मजदूर कैसे बर्दाश्त कर लेता और इसी लिए बंद हुआ प्रगतिशील साहित्य बिक्री केंद्। 
जब तक प्रदेश भाकपा में प्रदीप तिवारी प्रभावशाली रहेंगे उत्तर प्रदेश में भाकपा को उठने नहीं दे सकते हैं। अतः प्रगतिशील साहित्य बिक्री केंद्र को बंद करवाने का  शोषणकारी षड्यंत्र रच डाला।

Tuesday 9 September 2014

कामरेड सुरेन्द्र राम दिवंगत : भाकपा शोकग्रस्त ---डॉ गिरीश

कामरेड सुरेन्द्र राम दिवंगत : भाकपा ने शोक जताया
लखनऊ- भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की राज्य कार्यकारिणी के सदस्य, उत्तर प्रदेश खेत मजदूर यूनियन के अध्यक्ष एवं भारतीय खेत मजदूर यूनियन के राष्ट्रीय सचिव का.सुरेन्द्र राम का आज निधन होगया. वे ५७ वर्ष के थे
गाजीपुर जनपद के ग्राम- लहुरापुर के एक गरीब दलित परिवार में जन्मे का.सुरेन्द्र राम छात्र जीवन से ही राजनीति में सक्रिय थे. उन्होंने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से एम.ए.तथा एल.एल.बी. की डिग्रियां हासिल कीं. अपनी शिक्षा के दौरान वहीं वे आल इण्डिया स्टूडेंट्स फेडरेशन में शामिल होगये और उसके अगुआ नेताओं में रहे. उसी दरम्यान वे भाकपा में सक्रिय हुये और उसकी गाजीपुर जनपद काउन्सिल के लगभग दस वर्षों तक सचिव रहे. वे गाजीपुर जिला पंचायत के सदस्य भी निर्वाचित हुये. पिछले २० वर्ष से वे खेतिहर मजदूरों को संगठित करने में जुटे थे. वे निरंतर मार्क्सवाद, लेनिनवाद एवं डा. अम्बेडकर के सिध्दान्तों का अध्ययन करते रहे और उनसे प्रेरणा ग्रहण कर दलितों शोषितों एवं वंचितों के हित में संघर्ष करते रहे.
अभी हाल में उन्हें गम्भीर मस्तिष्क एवं ह्रदय आघात लगा और पहले मऊ, वाराणसी और अब लखनऊ के पी.जी.आई में उन्हें भरती कराया गया. लेकिन उनकी हालात में सुधार नहीं हुआ और चिकित्सको की सलाह पर उन्हें गत रात ही उनके पैतृक निवास ले जाया गया जहां आज सुबह ही उन्होंने अंतिम श्वांस ली. उनका अंतिम संस्कार आज गाजीपुर में गंगा के तट पर किया गया जहां बड़ी संख्या में राजनैतिक एवं सामाजिक हस्तियां मौजूद थीं.
संकट की इस घड़ी में भाकपा एवं खेत मजदूर यूनियन का नेतृत्व हर स्तर पर उनके साथ खड़ा रहा.
आज जैसे ही उनके निधन का समाचार भाकपा के राज्य कार्यालय पर मिला, वहां शोक का माहौल पैदा होगया. उनके सम्मान में पार्टी का झंडा झुका दिया गया.
राज्य कार्यालय पर एक शोक सभा का आयोजन किया गया. भाकपा के राज्य सचिव डा. गिरीश ने का. सुरेन्द्र के निधन को शोषित-पीड़ितों के आन्दोलन एवं भाकपा तथा खेत मजदूर यूनियन की अपूरणीय क्षति बताते हुये उन्हें इंकलाबी श्रध्दांजली अर्पित की. उन्होंने शोक-संतप्त परिवार को पार्टी की गहन संवेदनायें प्रेषित कीं. अंत में मौन रख कर उनके कार्यकलापों को याद किया गया. शोकसभा की अध्यक्षता उत्तर प्रदेश किसान सभा के सचिव का.रामप्रताप त्रिपाठी ने की. भाकपा राज्य सह सचिव अरविन्दराज स्वरूप, उत्तर प्रदेश खेत मजदूर यूनियन के सचिव फूलचंद यादव, भाकपा जालौन के जिला सचिव सुधीर अवस्थी, रामगोपाल शर्मा शमशेर बहादुर सिंह एवं राममूर्ति मिश्रा आदि ने भी श्रध्दा सुमन अर्पित किये.

  • Dhriti Pragya Singh सुरेन्द्र भ ईया का न रहना गाजीपुर की भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की अपूरणीय क्षति है मर्माहत हूँ लिखते हुये हमने एक पारिवारिक शुभचिंतक को गँवा दिया

  • Ambarish Rai कामरेड सुरेन्द्र राम के साथ बिताये दिन याद हो उठे. छात्र आंदोलन के दौरान उनसे मेरा संपर्क हुआ था और उसके बाद कई मोर्चों पर और कई मौकों पर उनसे लगातार संपर्क जारी रहा. वे एक बहादुर, स्पष्ट वक्ता और मार्क्सवादी सिद्धांतो पर अटूट भरोसा रखने वाले साथी थे. उनके असमय हमारे बीच से चले जाने की घटना ने हमें हिला कर रख दिया.वे हमेशा जमीन से जुड़े रहकर राजनीति के गहरे और बड़े प्रश्नों पर बेबाकी से अपनी बात रखते रहे हैं. कामरेड सुरेन्द्र राम के निधन से पूर्वांचल ने 'ग्राम्शी के शब्दों में एक Organic Intellectual खो दिया है' मै उन्हें अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ.

  • Vijai RajBali Mathur कामरेड सुरेन्द्र राम को लाल सलाम ।

Saturday 6 September 2014

Present power crisis due to Centre's faulty policy: AB Bardhan


LUCKNOW: The CPI today held Centre's "faulty policy" responsible for present power crisis and accused Adani and Tata groups of "blackmailing" by closing down power plants run by them, that generates over 8,000 MW electricity, to get the tariff revised.
"When the country was witnessing the most acute power crisis of the history due to faulty power policy of the Centre, closure of power plants with over 8,000 MW capacity by Adani and Tata groups to get the power tariff changed amounted to blackmail and the government must act tough against them," said AB Bardhan, veteran CPI leader.
He alleged when the Supreme Court on August 25 stayed hike in power tariff, these companies stopped their production.
Bardan, who is also Convener of national coordination committee of Power engineers and employees, held the policy of previous UPA government responsible for the crisis and demanded an amendment.
"The over dependability on private firms for power was responsible for the crisis being faced by the country. The amendment done by UPA government in Electricity Act 2003 should be taken back. In this amendment power supply and distribution were separated and licences for power supply was advocated," the former CPI General Secretary said.
Demanding the Narendra Modi government to review the "faulty power policy" of the UPA government at the earliest, Bardhan said "till this was done, process of privatisation, giving franchisee and amending the act should be stopped."
Due to UPA's power policy, a number of scams like coalgate and others have taken place and were coming to fore, he added.
Bardhan also announced that power engineers and employees would stage dharna during Winter Session of the Parliament in New Delhi and other places on the issue.
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