Saturday 1 November 2014

साम्यवाद भारत में ऐसे लोगों के कारण ही सफल नहीं हो पा रहा है ---विजय राजबली माथुर

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PT-1:

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PT-2 :

d g -p :


जिस रूप में मानव आज है वह 10 लाख वर्ष पूर्व अस्तित्व में आया है ऐसा वैज्ञानिक खोजों से सिद्ध हो चुका है। मतभेद केवल इस बात पर है और वह वैज्ञानिकों के मध्य भी है कि पहले 'नर ' की उत्पत्ति हुई या फिर 'मादा ' की। तथाकथित विभिन्न धर्म जो वस्तुतः संप्रदाय/मजहब/रिलीजन हैं 'धर्म' नहीं के द्वारा मनगढ़ंत और परस्पर विरोधी कहानियाँ प्रचलित है।
पृथिवी के निर्माण के बाद जब यह ठंडी हुई तो काफी समय तक यहाँ विभिन्न गैसों की बारिश होती रही और अंततः 'हाइड्रोजन '-2 भाग तथा 'आक्सीजन '-1 भाग के विलियन से 'जल ' की उत्पत्ति हुई जिससे बाद में वनस्पतियाँ अस्तित्व में आईं। सबसे पहले जल-जीव और कालांतर में अन्य जीवों की उत्पत्ति हुई। वैज्ञानिकों का एक वर्ग जल-जीव-मछली से मनुष्य तक की कल्पना करता है । इस सिद्धान्त को प्रिंस डि ले मार्क ने 'व्यवहार और अव्यवहार ' का संबोद्धन दिया है।  यदि इसी को सत्य मान भी लें तो भी पहले 'नर ' या 'मादा ' का प्रश्न अनुत्तरित रह जाएगा।
महर्षि कार्ल मार्क्स और शहीद सरदार भगत सिंह का नाम जप-जप कर साम्यवादी विद्वान भी पाश्चात्य वैज्ञानिकों के सुर में सुर मिला कर 'एथीस्ट वाद ' की आड़ में 'सत्य ' को स्वीकार नहीं करते हैं। जबकि दोनों महान विभूतियों ने प्रचलित मजहबों/संप्रदायों/रिलीजन को तथाकथित धर्म मानते हुये निष्कर्ष दिये थे और कभी भी उन दोनों ने वास्तविक धर्म का विरोध नहीं किया है। :



" वास्तविक धर्म=सत्य,अहिंसा (मनसा-वाचा-कर्मणा ),अस्तेय,अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य।

भगवान =भ (भूमि-ज़मीन  )+ग (गगन-आकाश )+व (वायु-हवा )+I(अनल-अग्नि)+न (जल-पानी)


चूंकि ये तत्व खुद ही बने हैं इसलिए ये ही खुदा हैं। 


इनका कार्य G(जेनरेट )+O(आपरेट )+D(डेसट्राय) है अतः यही GOD हैं।"



युवा नर और युवा मादा की उत्पत्ति एक साथ :



वस्तुतः 'जल' और 'वनस्पतियों' की उत्पत्ति के बाद पहले अन्य जीवों की उत्पत्ति उनके युवा नर एवं युवा मादा के रूप में हुई है जिनसे उनकी वंश वृद्धि होती रही है और प्रिंस डि ले मार्क के  'व्यवहार और अव्यवहार ' सिद्धांतानुसार उनका विकास-क्रम चला है। अब से लगभग 10 लाख वर्ष पूर्व 'मनुष्य ' की उत्पत्ति भी 'युवा नर ' और 'युवा मादा ' के रूप में एक साथ हुई है जिसे न तो कोई एथीस्ट और न ही तथा-कथित आधुनिक वैज्ञानिक और न ही थोथे - धर्म (सप्रदाय/मजहब/रिलीजन ) स्वीकार करने को तैयार हैं । 
युवा 'नर ' और 'मादा ' मनुष्यों की उत्पत्ति एक साथ अफ्रीका,एशिया और यूरोप में कुल तीन स्थानों पर हुई है। भौगोलिक व पर्यावरणीय परिस्थितियों के अनुरूप इन तीनों स्थानों के मानवों का विकास-क्रम चला है। 'एशिया' में मानव उद्भव जिस स्थान पर हुआ वह था-'त्रिवृष्टि ' अर्थात आज का 'तिब्बत' । परिस्थितिजन्य अनुकूलता के कारण यहाँ का मानव तीव्र विकास कर सका जबकि अफ्रीका व यूरोप का मानव पीछे रह गया था। यहाँ के मानव ने खुद को 'श्रेष्ठ '='आर्ष '='आर्य ' संबोद्धन दिया और सम्पूर्ण विश्व को 'आर्य' बनाने का बीड़ा उठाया । जनसंख्या वृद्धि के कारण यहाँ के आर्य दक्षिण में हिमालय पार कर के 'निर्जन' स्थान पर भी बसने लगे जिसे उन्होने 'आर्यावृत ' नाम दिया। लेकिन तथाकथित प्रगतिशील और आज  विकसित यूरोपीय लोगों ने प्रचारित कर दिया कि आर्यों ने भारत के मूल निवासियों को उजाड़ कर आक्रांता के रूप में  कब्जा किया था। जबकि वास्तविकता यह है कि भारत से आर्य पश्चिम में आर्यनगर-एरयान-ईरान होते हुये यूरोप और अफ्रीका गए थे। पूर्व में साईबेरिया के 'ब्लाडीवोस्टक ' से होते हुये अमरीका के 'अलास्का ' होकर  'तक्षक '-टेक्सास व मय'-मेक्सिको पहुंचे थे। 
दक्षिण दिशा से आस्ट्रेलिया  में पहुँचने वाले आर्य श्रेष्ठता के मार्ग से भटक गए थे और इनके वंशज रावण ने आज की श्री लंका को केंद्र बना कर विश्व-व्यापी साम्राज्य स्थापित कर लिया था । आज के यू एस ए (पाताल लोक ) का शासक एरावन तथा साईबेरिया का शासक कुंभकर्ण  रावण के सहयोगी थे। रावण ने जंबू द्वीप के प्रमुख व शक्तिशाली शासक बाली से अनाक्रमण संधि कर रखी थी । अतः अब से नौ लाख वर्ष पूर्व पृथ्वी पर प्रथम साम्राज्यवाद विरोधी संघर्ष हुआ था जिसमें साम्राज्यवादी परास्त हुये थे। किन्तु पाश्चात्य प्रभुत्व के कारण हमारे साम्यवादी विद्वान हकीकत को नकार देते हैं जिसका प्रतिफल यह है कि आज के साम्राज्यवादी उन्हीं राम का नाम लेकर जनता का दमन व शोषण कर रहे हैं जिनहोने सर्व-प्रथम साम्राज्यवाद को इस धरती पर परास्त किया था।
इसी प्रकार अब से लगभग पाँच हज़ार वर्ष पूर्व श्री कृष्ण ने समानता पर आधारित गण राज्य की स्थापना करके आदर्श प्रस्तुत किया था किन्तु प्रगतिशीलता व एथीज़्म के नाम पर इस तथ्य से आँखें फेर ली जाती हैं और बजाए कृष्ण का सहारा लेने के उनकी निंदा व आलोचना की जाती है जिसका लाभ पुनः सांप्रदायिक व साम्राज्यवाद समर्थक शक्तियाँ उठा लेती हैं। 
नानक,कबीर, रेदास,दयानन्द, विवेकानंद आदि के दृष्टिकोण साम्यवाद के निकट हैं किन्तु साम्यवादी विद्वान उसी एथीज़्म के वशीभूत होकर इनका सहारा लेने की जगह उनकी आलोचना करते हैं।

 PT-1 और PT-2 के खलनायक ने d g -p के नायक को भ्रमित कर रखा है जैसा कि उन टिप्पणियों से सिद्ध होता है। नायक साहब ने जिस पुलिस अधिकारी के बचाव में बयान जारी किया है उसे वकील कामरेड ने 'चोर' व 'उच्चका ' बताया है। नायक साहब के निर्णय 80 प्रतिशत खलनायक से प्रभावित रहते हैं। ऐसे में उत्तर-प्रदेश में भाकपा के सुदृढ़ होने का प्रश्न ही नहीं है। उत्तर-प्रदेश,बिहार समेत हिन्दी प्रदेशों में जब तक भाकपा या अन्य साम्यवादी दल जनता का विश्वास नहीं हासिल कर लेते  हैं  तब तक किताबी ज्ञान व इतिहास  के भरोसे लोकतन्त्र के जरिये सत्ता नहीं मिलने वाली है। 'सशस्त्र क्रांति' रूस में विफल हो चुकी है तो चीन में अपना अर्थ खो चुकी है। यदि साम्यवादी दल और वामपंथ राम के साम्राज्यवाद विरोधी संघर्ष को कोरी कल्पना कह कर उपहास उड़ाने की जगह उससे प्रेरणा लेकर तथा कृष्ण के उदाहरण सामने रख कर अपनी नीतियाँ निर्धारित करें तो जनता का विश्वास भी हासिल कर लेंगे और साम्राज्यवाद समर्थक सांप्रदायिक शक्तियों को भी बेनकाब कर के धराशायी कर सकेंगे। लेकिन खलनायक PT सरीखे  पोंगापंथी लोग क्या साम्यवाद को संकीर्ण जकड़न से निकल कर प्रगतिशील होने देंगे? जब तक ऐसा नहीं होता तब तक सारी कसरत व कवायद अपनी ही आँखों में धूल झोंकने वाली रहेगी। 
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  ~विजय राजबली माथुर ©
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