Thursday 30 June 2016

एथीज़्म/ नास्तिकता प्रकृति विरुद्ध आचरण हैं ------ विजय राजबली माथुर



Conversation started June 30, 2015

6/30, 10:04pm

Sir what is the main difference between socialism and communism

 'समाजवाद ' वह 'आर्थिक प्रणाली' है जिसमें 'उत्पादन' व 'वितरण' के साधनों पर समाज ( सरकार के माध्यम से  ) का आधिपत्य होता है और सबके लिए समान अवसर उपलब्ध करवाए जाते हैं। 
'साम्यवाद' वह सामाजिक अवस्था है जिसमें 'प्रत्येक से उसकी क्षमतानुसार व प्रत्येक को उसकी आवश्यकतानुसार' कार्य व उसका प्रतिफल उपलब्ध करवाया जाता है। 'आदिम-अवस्था' साम्यवाद की ही अवस्था थी। 
मनुष्य द्वारा मनुष्य के शोषण से समाज में विषमता व असमानता उत्पन्न हो गई है । इस अप्राकृतिक लूट व अमानवीय शोषण को समाप्त करने के लिए पहले 'समाजवाद' की स्थापाना करनी होगी जिसे बाद में धीरे-धीरे साम्यवाद में परिवर्तित किया जाएगा।
July 1, 2015

7/1, 9:58pm

Thanks  sir i got it!

गत वर्ष जिस जिज्ञासू ने 'समाजवाद' और 'साम्यवाद ' का अंतर पूछा था उन्हीं ने इस वर्ष (2016 ) पूछा है कि, 'एथीज़्म '/ 'नास्तिकता ' क्या है?

Tuesday

6/28, 8:04pm

hello sir good evening  ,how are you ? i use to read almost all of your blog it's carry immense knowledge and fully  analysed 
as you seems Marxist and   I'm in transition state of being so , i just want to know your view on atheism  . 
                          
                      your student

हो सकता है इन जिज्ञासू साहब ने एथीज़्म/नास्तिकता पर मेरे विचार इसलिए जानना चाहे हों कारण कि, मैं एथीज़्म/नास्तिकता का लगातार विरोध इसलिए करता हूँ कि, इसी के कारण भारत में 'साम्यवाद' असफल रहा है। और यह भी हो सकता है कि, इन जिज्ञासू महोदय को किसी दकियानूस मार्कसिस्ट ने मुझसे पूछने को प्रेरित किया हो। जो भी हो अपने विचार को सार्वजनिक करने में कोई हर्ज नहीं है। 




पौराणिक पोंगापंथी 'नास्तिक'/ एथीस्ट उसे कहते हैं जो ईश्वर/भगवान  पर विश्वास नहीं करता है और 'आस्तिक' उसे कहते हैं जो ईश्वर/भगवान पर विश्वास करता है। खुद को एथीस्ट कहलाने में गर्व का अनुभव करने वाले साम्यवादी ढ़ोंगी-पाखंडी इन पौराणिकों के कथन को 'सत्य ' मानते हुये ही ऐसा करते हैं। अपने पक्ष में शहीद भगत सिंह के लेख 'मैं नास्तिक  क्यों' तथा महर्षि कार्ल मार्क्स की  'धर्म ' को अफीम मानने की उक्ति के उदाहरण पेश करते हैं। छह माह रूस में साम्यवाद की ट्रेनिंग लिए आगरा भाकपा के एक पूर्व जिला मंत्री (एक डिग्री कालेज के पूर्व प्राचार्य ) साहब का कहना है कि, 'चारवाक' दर्शन 'नास्तिकता'/एथीज़्म पर आधारित है और साम्यवाद उसी से प्रेरित है। चरवाक ऋषि कहते थे :
जब तक जियो मौज से जियो 
घी पियो चाहे उधार ले के पियो। 

लेकिन महर्षि कार्ल मार्क्स ने बताया है कि, 'साम्यवाद' वह सामाजिक अवस्था है जिसमें 'प्रत्येक से उसकी क्षमतानुसार व प्रत्येक को उसकी आवश्यकतानुसार' कार्य व उसका प्रतिफल उपलब्ध करवाया जाता है।
निश्चय ही यह तो चारवाक दर्शन नहीं है। परंतु महर्षि कार्ल मार्क्स ने यूरोप के 'ओल्ड टेस्टामेंट' व 'प्रोटेस्टेंट' के संघर्ष को धार्मिक संघर्ष मानते हुये 'धर्म' की आलोचना की है। जबकि रिलीजन/मजहब/संप्रदाय धर्म होता ही नहीं है। शहीद भगत सिंह महज़ 24 वर्ष की आयु ही प्राप्त कर सके। उनका परिवार 'सिक्ख' होते हुये भी आर्यसमाजी था और वह 'सत्यार्थ प्रकाश' पढ़ कर ही क्रांतिकारी बने थे 1917 की रूसी क्रांति से प्रभावित थे और मार्क्स के अनुसार ही धर्म को लेकर उन्होने अपनी आलोचना प्रस्तुत की है। 

स्वामी विवेकानंद ने कहा है कि, 'आस्तिक' वह है जो अपने ऊपर विश्वास रखता है और नास्तिक वह है जिसका अपने ऊपर विश्वास नहीं है। संस्कृत में Phd किए लोग इस व्याख्या को नहीं मानते हैं और साम्यवादी भी उनका ही अनुसरण करते तथा जनता से कटे रहते हैं। मैं इसी व्याख्या के आधार पर नास्तिकता/एथीज़्म को साम्यवाद को भारत में सफल न होने देने का हेतु मानता हूँ। 

धर्म = प्रकृति के नियमानुसार आचरण करना ही होता है कोई मजहब/संप्रदाय/रिलीजन नहीं। धर्म 'सत्य,अहिंसा (मनसा-वाचा-कर्मणा ),अस्तेय,अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य का सम्मुच्य है न कि, मंदिर,मस्जिद,चर्च या गुरुद्वारा जाना। 
अतः धर्म का विरोध करना प्रकृति विरुद्ध आचरण है। 1991 तक रूस से साम्यवाद इसी लिए उखड़ गया कि, वहाँ इस वास्तविक धर्म के विरुद्ध कार्य हो रहा था। पार्टी नेता व अधिकारी भ्रष्टाचार में भी लिप्त थे और चारित्रिक हनन में भी। 

भगवान = भ (भूमि- पृथ्वी  )+ ग (गगन -आकाश )+व (वायु-हवा )+I (अनल-अग्नि )+न (नीर-जल )। 
चूंकि ये तत्व खुद ही बने हैं इनको किसी मानव ने निर्मित नहीं किया है इसलिए इनको ही 'खुदा' भी कहते हैं। 
और इनका कार्य G (जेनरेट )+O(आपरेट )+D(डेसट्राय) है अतः ये ही GOD- गाड हैं। और ये स्वम्य में ऐश्वर्य-सम्पन्न होने के कारण ईश्वर भी कहे जाते हैं। 
जब आप भगवान को नहीं मानते ऐसा कहते हैं तब आप कहाँ हैं ? सांस कहाँ से ले रहे हैं?जल कहाँ से ग्रहण कर रहे हैं?ऊर्जा कहाँ से ग्रहण कर रहे हैं? अर्थात आप झूठ बोल रहे हैं और ढ़ोगियों-पाखंडियों के पक्ष को मजबूत कर रहे हैं और उसी का परिणाम है केंद्र में फासिस्ट सरकार का सत्तारूढ़ होना। 

अतः निष्कर्ष यही निकलता है कि, प्रकृति के नियमानुसार आचरण करना ही 'धर्म' है और धर्म के तत्वों का सम्यक पालन ही आस्तिकता है और न मानना एवं पालन न करना ही 'नास्तिकता'/एथीज़्म। 
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