Thursday 9 June 2016

कन्हैया को डूटा द्वारा बुला कर बोलने से रोकना ;रोशन सुचान की चिंता ------ विजय राजबली माथुर





" वहां एक महिला शिक्षक ( जो संघ और ईरानी के चेली होंगी ) ने कन्हैया के हाथ से माइक छीन लिया और बोलने नहीं दिया और जोर जोर से चिल्लाना शुरू कर दिया । तब एआईफुक्टो - फेडकुटा द्वारा समर्थित डूटा की ओर से बिलकुल विरोध नहीं किया गया और वहां मौजूद अन्य वामपंथी - लोकतान्त्रिक शिक्षक - छात्र संगठनों से जुड़े शिक्षक भी मौन होकर तमाशबीन बने रहे जो गैरजिम्मेदाराना और निंदनीय है। कन्हैया डूटा के निमंत्रण पर जेएनयू छात्रसंघ का समर्थन देने गए थे. इसके लिए शिक्षक संगठनों को जिम्मेदारी और जवाबदेही लेते हुए जवाब देना होगा कि ऐसा क्यों हुआ ? "
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Sataynarayan Tripathi लिजलिजा सगठनो की हालत पैदा करने का कौन जिम्मेदार है ॽ सगठनो का बैनर वाम प्रगति शील पर कब्जा दछिण पन्थ विचारको का ॽ तब यह स्थिति पैदा होगी ़ॽट्रेड यूनियनो व एशियोसियसनो पर जब वे लोग पदासीन होगे जिन्हे वर्ग मित्र वर्ग शत्रु की पहिचान न होगी या उद्देश्य कलुसित ट्रेड करने के होगे ॽ सगठनो पर आम जन पर होल्ड नही होगा तब यह स्थितियॉ आयेगी ॽ
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जे एन यू एस यू अध्यक्ष कन्हैया से जितना खतरा कार्पोरेटी ब्राह्मण वादी कामरेड्स को है उतना दूसरे किसी को नहीं, इस तथ्य को हमेशा ध्यान में रखना होगा तभी सच्चाई तक पहुंचा जा सकेगा। जबसे 04 मार्च 2016 को जेल से आने पर कन्हैया ने 'नीली' कटोरी और ' लाल ' कटोरी का उदाहरण दे कर  वामपंथ व अंबेडकरवाद की एकता की बात कही है तभी से वह वामपंथ के अश्लीलता समर्थक बाजारवादी ब्राह्मण कामरेड्स के निशाने पर चल रहे हैं। भारत में 'सर्व हारा ' वर्ग का मतलब उस तबके से है जिसे यहाँ दलित कहा जाता है और जो डॉ अंबेडकर का अनुयाई माना जाता है। कन्हैया इसी वर्ग के साथ एकता करके वामपंथ को मजबूत करना चाहते हैं। उनका उद्देश्य पवित्र है। लेकिन इतना तो सच है ही कि, वामपंथी संगठनों पर 'दक्षिण पंथी विचारकों' का ही कब्जा है जिनको कन्हैया की बात कभी भी स्वीकार्य नहीं हो सकती क्योंकि वास्तविक सर्व हारा के वामपंथ के साथ आने से इन संगठनकर्ता ब्राह्मणों का अस्तित्व गौड़ हो जाएगा। अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए सिद्धांतों की रट लगा कर इन लोगों ने 1964 में  CPM का गठन कर लिया था। उत्तर प्रदेश में इसी लिए 1994 के बाद से दो-दो बार पार्टी में टूटन हो चुकी है। इसका सीधा -सीधा लाभ बाजरवादी ब्राह्मण कामरेड्स को हुआ है। यू पी से CPI की नेशनल काउंसिल में 7 प्रतिनिधि हैं जिनमें से 4 ब्राह्मण हैं और इन चार में 3 एक ही परिवार से संबन्धित हैं। क्या अंबेद्कर वादियों के वामपंथ से जुडने पर ऐसा हो सकेगा? निश्चय ही नहीं। इन ब्राह्मण वादी कामरेड्स को कार्पोरेटी/ मोदीइस्ट कहना अधिक उपयुक्त होगा। ये ही अप्रत्यक्ष रूप से कन्हैया विरोधी अभियान के सूत्रधार हैं। जब तक ऐसे लोगों को वामपंथ से साईडट्रेक नहीं किया जाता तब तक कन्हैया का पवित्र अभियान सफल होना संदिग्ध बना रहेगा। डूटा आंदोलन के दौरान कन्हैया के साथ बदसलूकी इसी का नतीजा है। 

जब तक वामपंथ का शुद्धिकरण नहीं हो जाता फासिस्ट शक्तियाँ निरंतर मजबूत होती जाएंगी। IAS आदि सरकारी सेवाओं में संघी मानसिकता के लोग भरते जाएँगे। यदि केंद्र में गैर फासिस्ट सरकार बन भी जाएगी तब भी ये संघी ब्यूरोक्रेट्स उस सरकार को पंगु करके संघी एजेंडा लागू करते रहेंगे। क्या वामपंथ ने इस लूट के विरुद्ध आवाज़ उठाई ? उठाएँ तो कैसे? संगठनों पर बाजारवादी ब्राह्मण कामरेड्स कब्जा किए हुये हैं, वे अपने वर्ग हित का विरोध करेंगे, ऐसा सोचना भारी भूल होगी। 
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17-06-2016 

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