Wednesday 31 August 2016

वामदलों की संयुक्त रैली 9 नवम्बर को लखनऊ में ------ अरविंद राज स्वरूप



Arvind Raj Swarup Cpi

> जन समस्याओं को लेकर वामदलों की संयुक्त रैली 9
नवम्बर को लखनऊ में
> उ0प्र0 विधानसभा चुनाव में संयुक्त रूप से उतरेंगे
वामदल
>
> लखनऊ 30 अगस्त। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी,
भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माक्र्सवादी),
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माले-लिबरेशन),
एस0यू0सी0आई0 (सी0) तथा आर0एस0पी0 के राज्य
नेतृत्व ने आज माकपा कार्यालय पर संयुक्त प्रेस
वार्ता की।
> वार्ता में निम्न प्रेस नोट जारी किया गया:-
> उत्तर प्रदेश में 6 वामपंथी दलों ने अपनी संयुक्त
कार्यवाहियां सघन की हैं। केन्द्र सरकार द्वारा
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर किये गये हमले हों
अथवा उत्तर प्रदेश में सूखे की विभीषिका का
सुलगता सवाल, वामपंथी दलों ने संयुक्त रूप से सड़कों
पर उतर कर आवाज उठायी है। इन कार्यक्रमों की
फेहरिश्त लंबी है।
> गत तीन माह में वामपंथी दलों ने महंगाई,
बेरोजगारी, महंगी शिक्षा और स्वास्थ्य सेवायें,
भ्रष्टाचार, किसानों की दयनीय दशा और
आत्महत्यायें, सूखा और बाढ़ की त्रासदी, दलितों,
महिलाओं और अल्पसंख्यकों पर बढ़ते अत्याचार तथा
साम्प्रदायिकता के सवाल पर कई संयुक्त सम्मेलन
आयोजित किये हैं। एक राज्य स्तरीय संयुक्त सम्मेलन
20 जून को लखनऊ में आयोजित किया गया तो 23
जुलाई को को मुजफ्फरनगर, 24 जुलाई को फैजाबाद
तथा 28 अगस्त को वाराणसी में सफल सम्मेलन किये
जा चुके हैं। अब 4 सितम्बर को मुरादाबाद तथा 10
सितम्बर को मथुरा में संयुक्त सम्मेलनों की तैयारी चल
रही है तथा अन्य पर विचार किया जा रहा है। सभी
सम्मेलनों में वामदलों का राज्य नेतृत्व भागीदारी कर
रहा है।
> आज यहां सम्पन्न वामदलों की संयुक्त बैठक का
निष्कर्ष है कि आर0एस0एस0 नियंत्रित केन्द्र की
सरकार पूरी तरह कारपोरेटों के हित में और आमजनों के
हितों के विरूद्ध काम कर रही है। अपनी
कारगुजारियों से उपजे जन असंतोष को भटकाने और
आर्थिक नव उदारवाद के एजेण्डे को मजबूती से लादने
को वह साम्प्रदायिकता को बढ़ावा दे रही है।
> उत्तर प्रदेश की राज्य सरकार भी अपने घोर
जनविरोधी एजेण्डे पर चलने के कारण हर मोर्चे पर पूरी
तरह विफल रही है। साम्प्रदायिकता से दृढ़ता से लड़ने
के बजाय वह अपने राजनीतिक हितों के लिए
साम्प्रदायिक शक्तियों से सांठगांठ बनाये हुए है।
मौजूदा साल में प्रदेश में हुए लगभग 200 छोटे बड़े
साम्प्रदायिक दंगे इसका जीता जागता उदाहरण हैं।
> वामपंथी दल इस बात से बेहद चिन्तित हैं कि इस
बीच केन्द्र सरकार भाजपा और संघ परिवार की शह
पर दलितों, महिलाओं और अल्पसंख्यकों पर हमलों में
तेजी आयी है तथा राज्य सरकार इनको रोकने में अपने
दायित्व का निर्वाह नहीं कर रही हैं।
> वामपंथी दलों ने संकल्प लिया है कि वे आने वाले
दिनों में देश व उत्तर प्रदेश की जनता के हित में अपने
आंदोलनों को और तेज धार देंगे।
> कमरतोड़ महंगाई, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, महंगी
पढ़ाई और महंगे इलाज, किसानों कामगारों की
बदहाली, सूखा/बाढ़ की त्रासदी, गन्ना किसानों
के चीनी मिलों पर बकाये का मय ब्याज फौरन
भुगतान, निजी कम्पनियों को सौंपी गयी बीमा
कम्पनियों द्वारा किसानों के साथ धोखाधड़ी,
महाजनी कर्ज की व्यवस्था पर रोक तथा सूखा और
बाढ़ पीड़ितों के कर्ज की माफी, पंगु बनी राशन
प्रणाली और उसमें गरीबों के साथ ठगी, सभी को
राशन एवं राशनकार्ड, दलितों, महिलाओं व
अल्पसंख्यकों पर बढ़ते अत्याचार और अत्याचारियों
को कड़ी सजा, सीलिंग और अवैध कमाई के बल पर
संचित जमीनों के अधिग्रहण और उसका दलितों और
अन्य भूमिहीनों में वितरण, सभी गरीबों को समुचित
आवास हेतु भूमि और धन का आवंटन, औद्योगिक,
असंगठित व खेत मजदूरों के अधिकारों की रक्षा तथा
साम्प्रदायिक शक्तियों की कारगुजारियों पर रोक
आदि सवालों पर स्थानीय स्तरों पर आन्दोलन तेज
किया जायेगा।
> इसके बाद 6 वामपंथी दल प्रदेश की राजधानी
लखनऊ में उपर्युक्त सवालों पर 9 नवम्बर को एक संयुक्त
रैली का आयेाजन करेंगे।
> वामपंथी दल चुनावों को भी जनता के मुद्दों पर
आन्दोलन के रूप में ही लड़ते हैं। 6 वामपंथी दलों ने उत्तर
प्रदेश विधानसभा के आगामी चुनावों में मुद्दों के
आधार पर संयुक्त रूप से उतरने का निश्चय किया है।
> वामदल धर्मनिरपेक्ष व जनवादी ताकतों और आम
मतदाताओं से आग्रह करेंगे कि वे प्रदेश को दुर्दशा के
हालातों में पहुंचाने वाले, मुद्दाविहीन राजनीति
करने वाले, पूंजीवादी, जातिवादी, साम्प्रदायिक
और जनविरोधी दलों को परास्त करें और वामपंथ को
मजबूत करें। मुद्दों पर आधारित राजनीति ही प्रदेश
को मौजूदा दलदल, दल-बदल और धनबल से उबार सकती
है।
> वामपंथी दलों ने दो सितम्बर को अपनी मांगों के
लिए की जा रही मजदूर वर्ग की ऐतिहासिक हड़ताल
को पूर्ण समर्थन प्रदान किया है और अपने
कार्यकर्ताओं व समर्थकों से आह्वान किया है कि वे
सड़कों पर उतर कर मेहनतकश वर्ग को समर्थन प्रदान करें.
प्रेस वार्ता में भाकपा राज्य सचिव डा. गिरीश,
सहसचिव अर्विन्द्राज स्वरूप, माकपा राज्य सचिव
हीरालाल यादव, सचिव मंडल सदस्य दीनानाथ सिंह
यादव, भाकपा- माले के सचिव रामजी राय, अरुण
कुमार सिंह, फार्बर्ड ब्लाक सचिव एस.एन. सिंह,
एस.यू.आई. सी - के जगन्नाथ वर्मा शामिल थे.

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Madhuvandutt Chaturvedi
01-09-2016   
उत्तर प्रदेश में बिहार की तर्ज पर वाम मोर्चे को अकेले चुनाव लड़ने से कोई फायदा नहीं होगा । इस मामले में पंजाब में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का कांग्रेस के साथ चुनाव लड़ने का फैसला विवेकपूर्ण है । यूपी में भाकपा को सीपीआई (एम) और सीपीआई (एम एल) की छाया से बाहर आकर स्वतंत्र निर्णय लेना चाहिए था ।

https://www.facebook.com/madhuvandutt/posts/998376373608429

मधुवन दत्त चतुर्वेदी जी का निष्कर्ष सटीक है किन्तु उन्होने इस बात पर ध्यान नहीं दिया है कि, यूपी में भाकपा  ब्राह्मणों  अथवा ब्राह्मण वादियों और विशेषतः एक ही परिवार के नियंत्रण में है। इसके सूत्रधार का मंत्र है कि, obc एवं  sc वर्ग के लोगों से सिर्फ काम लिया जाये उनको कोई पद न दिया जाये , वह 1994 से अब तक दो बार पार्टी को विभाजित भी करा चुके हैं तथा भाकपा प्रत्याशी रहे obc एवं  sc वर्ग के लोगों  को पार्टी छोडने पर मजबूर भी कर चुके हैं। ऐसे तत्व भीतर-भीतर फासिस्ट शक्तियों को लाभ पहुंचाते हैं । उनको हटाये बगैर भाकपा का भविष्य सुरक्शित नहीं हो सकता है। 
(विजय राजबली माथुर )

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