Monday 26 December 2016

वामपंथ की विपक्षता क्या है ? ------ सत्यप्रकाश गुप्ता




Satyaprakash Gupta.
अच्युतानंद ,माणिक सरकार या राहुल गाँधी ? कौन हैं वामपंथी नेता ?
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी बहुत चर्चा में हैं ! सूना कि वाक्-पटु और भाषण-कला-विशारद और मनमोहक प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को जवाब अपने भाषणों से दे रहे हैं और लाखो की भीड़ तालियां बजाती ठहर सी गयी थी ! गुजरात के मेहसाणा में ऐसा ही हुआ और उत्तरप्रदेश के कुछ शहरों में भी राहुल गाँधी को गंभीरता से सुना गया !
ये तो अच्छी बात है कि देश में सडकों पर कांग्रेस पार्टी मुख्य विपक्षी- दल के रूप में उभर रहा है और मनमोहक प्रधानमंत्री अपने पद की गरिमा का ख्याल किये बगैर राहुल गाँधी का मज़ाक उड़ा रहे हैं ! ये तो गलत बात है ! प्रधानमंत्री को राहुल के सवालो का जवाब देना चाहिए न कि ऐसा " वो तो अभी-अभी भाषण -कला में निपुण हो रहे हैं " कह राजनीतिक विदूषक बनना चाहिए !
वामपंथ की विपक्षता क्या है ?
खैर , मुझे सबसे ज़्यादा आश्चर्य तब होता है जब वामपंथ नेता अपनी पब्लिक रैली में राहुल की तरह का सवाल किये बगैर राहुल गाँधी के पक्ष में बोलना शुरू कर दिया है ! वामपंथ की विपक्षता क्या है ? जनता की दुर्दशा में राहुल गाँधी के प्रवचन से "विपक्ष में रहने के भाव को ज़िंदा रखना " भी तो उतना ही गलत है !!!!!
राहुल गाँधी सहारा की डायरी से जो हवाला देते हुए प्रधानमंत्री मोदी के भृष्ट होने का आरोप लगाया था , उससे तो भाजपा को निजात मिल गयी क्योंकि उस डायरी में शीला दीक्षित के नाम के आगे १ करोड़ का घूस लेने का आरोप है ! शीला दीक्षित इस लिस्ट की प्रमाणिकता को गलत बताती है ! वामपंथी पार्टी नेता सीताराम येचुरी को समझना चाहिए कि ये दोनों पार्टियां पूँजी की पक्षधर पार्टियां है !विदेशों  से चंदा लेने पर दोनों पार्टियां फस रही थी तो दोनों ने विदेशी दान के लिए नीति बनाकर दोनों उनसे बाहर हो गयीं.!
कांग्रेस पार्टी और भाजपा में ज़्यादा का फ़र्क़ नहीं है ! पता नहीं एक ईमानदार छवि वाली वामपंथी पार्टी होने के बावज़ूद , अपनी ईमानदारी से क्यों डरी रहती है ? ममता बनर्जी ने पश्चिम बेंगाल से ज़रूर बेदखल कर दिया लेकिन ६ साल हो गए वामपंथी नेता, मंत्री को भ्र्ष्टाचार के आरोप में फसा नहीं सकी बल्कि ममता की पार्टी तृणमूल पार्टी के बहुत सारे विधायक और मंत्री "चिट-फण्ड- घोटाला" में जेल जा चुके हैं !
वामपंथ का स्वर्णिम काल इस देश की आज़ादी से लेकर देश के राष्ट्रवाद को मज़बूत करने में इनके नेताओं और कार्यकर्ताओं ने अपनी अपना योगदान दिया है ! तेलंगाना का किसान आंदोलन हो या खालिस्तान आंदोलन के खिलाफ अपने विधायक या अपने कार्यकर्ताओं की शहादत हो , कोई दूसरी पार्टी वामपंथ की शहादत और ईमानदारी के सामने टिक नहीं सकती ! नंदीग्राम एक भयानक गलती हो सकती है लेकिन ये एक भयानक कांस्पीरेसी भी है ! इस के बावज़ूद, वामपंथी नेता और मंत्री पर बेदाग़ हैं !
त्रिपुरा का गरीब और ईमानदार मुख्यमंत्री माणिक सरकार की ईमानदारी से वामपंथ आक्रांत क्यों है ? मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री अपने पूरे परिवार समेत व्यापम के नर-संहारी भ्र्ष्टाचार के आरोप में फसे हैं ! वामपंथ का भारतीय संसदीय इतिहास का चरित्र बेरोक-टोक बेदाग़ है , फिर वामपंथ को हुंकार भरने में परेशानी क्यों पड़ती है ? राहुल गाँधी के हुंकार से कांग्रेस पार्टी मज़बूत होगी, वामपंथ नहीं !
केरल का भूतपूर्व मुख्यमंत्री अच्युतानंद और त्रिपुरा का वर्मन मुख्यमंत्री माणिक सरकार के पास अपना घर नहीं है , बैंक में १०-१५ हज़ार रुपये ..ऐसे छवि वाले मुख्यमंत्रियों और कार्यकर्ताओं को वामपंथ देश के सामने उदहारण नहीं बनाकर कांग्रेस पार्टी के नेता राहुल गाँधी का वास्ता देता है , समझ से परे हैं !
 वामपंथ भी उतना ही ज़िम्मेदार है ! 
इन दोनों वामपंथी मुख्यमंत्रियों की पहचान महानगरों के कॉलेजों में कराया जाए तो मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि इन्हें अरबिंद केजरीवाल, रमन सिंह ,शिवराज्य सिन चौहान,आदि मुख्यमंत्रियों की तुलना में कोई नहीं जानता ! मीडिया तो ज़िम्मेदार है लेकिन वामपंथ भी उतना ही ज़िम्मेदार है ! कभी-कभी तो वामपंथ के आलस्य या नासमझी को मैं देश की गरीब जनता के लिए अभिशाप मानता हूँ ! इन छह पार्टियों के नेताओं को भी देश का मीडिया ठीक से नहीं जानता है ! सारा दोष मीडिया को नहीं दे सकते !सोशल मीडिया पर भी वामपंथ नहीं !
६ वामपंथी दलों की एकता में ऐसी ताकत है कि नोटबंदी से उत्पन्न गरीबों के भयानक हालातों से एक ऐसा आंदोलन खड़ा हो सके कि जनता कम -से -कम आपके बारे में, वामपंथ के बारें में सोचना शुरू कर दें ! माणिक सरकार की ईमानदारी और उनकी सरकार की उपलब्धि के बारे में देश की जनता जानना शुरू कर दें !

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2 comments:

  1. कामरेड विजय , सलाम ...आपकी आपत्तियां दरअसल मेरी भी यही हैं...वामपंथ का शीर्ष नेतृत्व विभ्रम की स्थिति में है ...मैं सैकड़ों मीटिंग्स में यह बात कह चुका हूँ कि वाम का एजेंडा पर बात हो के किसी और के एजेंडा का समर्थन या विरोध में ही वामपंथ मर खप जाएगा हिन्दोस्तान में ..??? वे हमारे कार्यक्रम का विरोध करें या समर्थन ...यह स्थिति वाम दलों में कब आएगी ...आप ठीक कह रहे हैं...हमें वाम एकता को पहला और सबसे जरूरी काम बना होगा २०१७ में... आप क्या सोचते हैं..बताएं

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